भरोसा
अब भी मौजूद है दुनिया में
नमक की तरह
अब भी
पेड़ों के भरोसे पक्षी
सब कुछ छेड़ जाते हैं
बसंत के भरोसे वृक्ष
बिलकुल रीत जाते हैं
पतवारों के भरोसे नांव
संकट लांघ जाती है
बरसात के भरोसे बीज
धरती में समा जाते हैं
अनजान पुरुष के पीछे
सदा के लिये स्त्री चल देती है
-पवन करण
जन्मः 18 जून,1964
ग्वालियर म.प्र.