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Thursday, April 12, 2018

मेरे मन का डर.....कुसुम कोठारी


आजकल डर के कारण
सांसे कुछ कम ले रही  हूं 
अगली पीढ़ी के लिये
कुछ प्राण वायु छोड़ जाऊं, 
डरती हूं क्या रहेगा
उनके हिस्से
बिमार वातावरण
पानी की कमी
दूषित खाद्य पदार्थ
डरा भविष्य
चिंतित वर्तमान
जीने की जद्दोजहद
झूठ, फरेब
बेरौनक जिंदगी
स्वार्थ
अविश्वास
धोखा फरेब 
अनिश्चित जीवन
वैर वैमनस्य
फिर  से दिखता
आदम युग
यह भयावह
चिंतन मुझे डराता है
सोचती हूं अभीसे
पानी की
एक एक बूंद का
हिसाब रखूं
कुछ तो सहेजू
उनके लिये
कुछ अच्छे संस्कार
दया कोमल भाव
सहिष्णुता
मजबूत नींव
धैर्य आदर्श 
कि वो अपने
पूर्वजों को कुछ
आदर से याद करें
चैन से जी सके
और अपनी अगली पीढ़ी को 
 कुछ अच्छा देने की सोचें....
-कुसुम कोठारी

Tuesday, April 10, 2018

किसी बूढे़ समन्दर की कहानी....ज़हीर कुरैशी

यहाँ हर व्यक्ति है डर की कहानी
बड़ी उलझी है अन्तर की कहानी

शिलालेखों को पढ़ना सीख पहले
तभी समझेगा पत्थर की कहनी

रसोई में झगड़ते ही हैं बर्तन
यही है यार, हर घर की कहानी

कहाँ कब हाथ लग जाए अचानक
अनिश्चित ही है अवसर की कहानी

नदी को अन्तत: बनना पड़ा है
किसी बूढे़ समन्दर की कहानी
-ज़हीर कुरैशी