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Monday, January 16, 2017

मन उस पार पहुँच जाता है......डॉ. पूर्णिमा शर्मा



प्रेम बिना जीवन सूना है, प्रेम बिना जीवन नीरस है |
नहीं दिखाई पड़ता फिर भी कण कण रस से भर जाता है ||

किया प्रेम है जिसने उसको पतझर भी मधुमास है लगता 
नहीं वसंती पुष्प खिले हों, फिर भी राग वसन्त है जगता |
नहीं बहे मलयानिल फिर भी मन का बिरवा हुलसाता है 
जग का कण कण झूम झूम कर राग बहार सुना जाता है ||

नहीं कोई जो तार छेड़ कर वीणा को मुखरित कर जाए 
अन्तरतम में फिर भी मीठा राग कहीं से बज उठता है |
नहीं किसी की पायल झनकी, नहीं किसी के कँगना खनके 
इसी मौन में अनदेखा सा नृत्य कहीं पर हो जाता है ||

बिना किसी का हाथ लगे ही मन रोमांचित हो उठता है 
और अदृश्य बना सपनों में कोई गले लगा जाता है |
नहीं पास है आता कोई किन्तु पैठ जाता है मन में 
प्रेमपगा मन अनजाने ही अद्भुत रास रचा जाता है ||

किसी लोक से कोई किरण आ मन को आलोकित कर देती 
और अदृश्य वंशी की धुन फिर कोई अलौकिक राग सुनाती |
उड़ जाता मन, दूर क्षितिज में इन्द्रधनुष से रंग उभरते 
और उसी ज्योतित पथ पर चल मन उस पार पहुँच जाता है ||

-डॉ. पूर्णिमा शर्मा
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