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Wednesday, December 21, 2016

हाज़िर है तमाशा फिर से...कुँवर कुसुमेश

मिलने वाला है नए साल का तोहफा फिर से,
लोग कहते हैं कि हाज़िर है तमाशा फिर से।

पैरहन जिसने दिखावे के सिला रक्खे हैं ,
ओढ़ लेगा वो शराफ़त का लबादा फिर से।

डूब जायेंगे कई लोग हमेशा की तरह ,
लाँघ जायेगा कोई आग का दरिया फिर से।

तैरने वाला कभी हार नहीं मानेगा,
यानी तैराक तलातुम से लड़ेगा फिर से।

हम इसी दर्ज़ा "कुँवर" देंगे बधाई हरदम,
देखते जाइये क़ुदरत का करिश्मा फिर से।

-कुँवर कुसुमेश 

Tuesday, September 13, 2016

वादा करो मुहब्बत का.......कुँवर कुसुमेश


हो सके , ऐतबार कर लेना। 
और तुम मुझसे प्यार कर लेना।

पहले वादा करो मुहब्बत का ,
फिर गिले तुम हज़ार कर लेना।

तुमको पाने का एक मतलब है,
ज़िन्दगी खुशगवार कर लेना।

रात-दिन तुमको याद करता हूँ ,
खुद को भी महवे-यार कर लेना।

अपने दामन में रौशनी भर लो,
कुछ सितारे शुमार कर लेना।

सात जन्मों का साथ हो अपना,
इस तरह का क़रार कर लेना।

देर हो जाए गर "कुँवर" मुझको,
दो घडी इंतज़ार कर लेना।

-कुँवर कुसुमेश 

महवे-यार = यार के ख्यालों में तल्लीन

Tuesday, June 7, 2016

क्यूँकि लाखों हैं यहाँ स्वाँग रचाने वाले.....कुँवर कुसुमेश


फिक्र बिलकुल न करें आग बुझाने वाले। 
पानी पानी हैं सभी आग लगाने वाले।

मुझको अहसासे-मुहब्बत पे गुमाँ है लेकिन,
उनको अहसास करा देंगे कराने वाले।

सिर्फ दिखते हुए दाँतों से हमें क्या लेना,
दाँत हाथी के अलग होते है खाने वाले।

कैसे पहचाने कोई आज किसी इंसाँ को,
क्यूँकि लाखों हैं यहाँ स्वाँग रचाने वाले।

वक़्त आने पे मुकर जाते हैं यूँ तो लाखों,
फिर भी देखे हैं कई फ़र्ज़ निभाने वाले।

प्यार के नाम पे लुट जाना हमारी फितरत,
प्यार में हम है "कुँवर" जान लुटाने वाले।

-कुँवर कुसुमेश

Friday, February 5, 2016

अजब हालात पैदा हो गए हैं दौरे-हाज़िर में...-कुँवर कुसुमेश


दिखाऊँगा किसी दिन मैं भी जा करके मदीने में। 
हज़ारों दर्द मैंने दफ़्न कर रक्खे हैं सीने में।

चलो देखें ज़रा चलकर सफ़ीने को हुआ क्या है,
किसी ने छेद कर रक्खा है क्या मेरे सफीने में।

मुझे बेकार लगता है हमेशा मैकदा जाना,
मज़ा तो यार आता है तेरी आँखों से पीने में।

गरीबों के लिए दो वक़्त की रोटी ही काफी है,
सुकूने-क़ल्ब दिखता है गरीबों के पसीने में।

तुम्हें देखेगा बेपर्दा कभी कोई तो कह देगा ,
बला का हुस्न है यारो क़सम से इस नगीने में।

अजब हालात पैदा हो गए हैं दौरे-हाज़िर में,
"कुँवर" अच्छा नहीं लगता है अब तो यार जीने में।

-कुँवर कुसुमेश 
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सुकूने-क़ल्ब = दिल का सुकून
दौरे-हाज़िर = वर्तमान परिस्थिति

Friday, January 22, 2016

हैं कहाँ हिचकियाँ आज के दौर में.....कुँवर कुसुमेश


सिर्फ लफ़्फाज़ियाँ आज के दौर में। 
और चालाकियाँ आज के दौर में।

अधखुला जिस्म लेकर के घूमें-फिरें,
राह में लड़कियाँ आज के दौर में।

देख लो पल रही पाउडर मिल्क पर,
दुधमुही बच्चियाँ आज के दौर में।

रुखसती के समय में भी बूढ़े बहुत, 
कर रहे शादियाँ आज के दौर में।

डॉक्टर की बदौलत ही मरने लगीं,
कोख में बेटियाँ आज के दौर में।

अब न शोखी न शोखी का मतलब कोई ,
खो गईं शोखियाँ आज के दौर में।

याद महबूब को भी न आती "कुँवर",
हैं कहाँ हिचकियाँ आज के दौर में।

-कुँवर कुसुमेश