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Sunday, September 3, 2017

औकात.....रचनाकार अज्ञात


एक माचिस की तिल्ली, 
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे, 
कुछ घण्टे में राख.....
बस इतनी-सी है 
आदमी की औकात !!!!

एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया , 
अपनी सारी ज़िन्दगी ,
परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट ,
तो कहीं फुसफुसाहट ....
अरे जल्दी ले जाओ 
कौन रखेगा सारी रात...
बस इतनी-सी है 
आदमी की औकात!!!!

मरने के बाद नीचे देखा , 
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे .....
कुछ लोग ज़बरदस्त, 
तो कुछ ज़बरदस्ती 
रो रहे थे। 

नहीं रहा.. ........चला गया...
चार दिन करेंगे बात.........
बस इतनी-सी है 
आदमी की औकात!!!!!

बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा,
सामने अगरबत्ती जलायेगा ,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी...
अखबार में अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी.........
बाद में उस तस्वीर पे,
जाले भी कौन करेगा साफ़...
बस इतनी-सी है 
आदमी की औकात !!!!!!

जिन्दगी भर,
मेरा- मेरा- मेरा किया....
अपने लिए कम ,
अपनों के लिए ज्यादा जिया...
कोई न देगा साथ...
जायेगा खाली हाथ....
क्या तिनका ले जाने की भी है हमारी औकात ???
ये है हमारी औकात
फिर घमंड कैसा ?
-रचनाकार अज्ञात