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Monday, June 8, 2020

क़त्ल का कैसा है ...डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी


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दिल सलामत भी नहीं और ये टूटा भी नहीं ।
दर्द बढ़ता ही गया जख़्म कहीं था भी नहीं ।।

कास वो साथ किसी का तो निभाया होता ।
क्या भरोसा करें जो शख्स किसी का भी नहीं ।।

क़त्ल का कैसा है अंदाज़ ये क़ातिल जाने ।
कोई दहशत भी नहीं है कोई चर्चा भी नहीं ।।

मैकदे में हैं तेरे रिंद तो ऐसे साकी ।
जाम पीते भी नही और कोई तौबा भी नहीं ।।

सोचते रह गए इज़हारे मुहब्बत होगी ।
काम आसां है मगर आपसे होता भी नहीं ।।

वो बदल जाएंगे इकदिन किसी मौसम की तरह।
इश्क से पहले कभी हमने ये सोचा भी नहीं ।।

रूठ कर जाने की फ़ितरत है पुरानी उसकी ।
मैंने रोका भी नहीं और वो रुकता भी नहीं ।।

कोशिशें कुछ तो ज़रा कीजिए अपनी साहब ।
मंजिलें ख़ुद ही चली आएंगी ऐसा भी नहीं ।।

हिज्र के बाद तो जिंदा रही इतनी सी ख़लिश ।
हाले दिल आपने मेरा कभी पूछा भी नहीं ।।

-डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी

Wednesday, July 15, 2015

पाल बैठा बड़ी उम्मीद बेवफा तुमसे...नवीन त्रिपाठी


बहुत तन्हा हूँ मैं ये वक्त कह गया हमसे।
पाल बैठा बड़ी उम्मीद बेवफा तुमसे ।।

दोस्ती आज बे नकाब मेरी महफ़िल में ।
दीदार फिर से वो मेरा करा गया गम से ।।

फ़िक्र जिस जिस की मैं दिन रात किया करता था।
वही खंजर यहां मुझपर चला गया दम से ।।

मेरे नीलाम की बोली में वह भी हाजिर था ।
मेरी औकात की कीमत लगा गया कम से ।।

-नवीन त्रिपाठी
उर्दू शायरी बज़्म