Thursday, January 10, 2019

रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये...निदा फ़ाज़ली

अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये 

जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये 

बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं 
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये 

ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में 
और कुछ दिन यूँ ही औरों को सताया जाये 

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें 
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये
-निदा फ़ाज़ली


6 comments:

  1. 'घर से मस्जिद है ---' निदा फाजली साहब का यह शेर ऐतिहासिक ख्याति प्राप्त कर चुका है.

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  2. वाह गजब गहराई लिये सीधे से अल्फाज़।

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  3. निदा फ़ाज़ली का कोई सानी नहीं।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (11-01-2019) को "विश्व हिन्दी दिवस" (चर्चा अंक-3213) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
    किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये...
    वाह!!! बहुत खूब ,सच इससे बड़ा पुण्य कोई हो ही नहीं सकता

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  6. एक लोकप्रिय रचना को फिर से पढ़वाने का मौका देने के लिए आभार...

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