तन्हाई में बिखरी खुशबू ए हिना तेरी है
वीरान खामोशियों से आती सदा तेरी है
टपक टपक कर भरता गया दामन मेरा
फिर भी खुशियों की माँग रहे दुआ तेरी है
अच्छा बहाना बनाया हमसे दूर जाने का
टूट गये हम यूँ ही या काँच सी वफा तेरी है
सुकून बेचकर ग़म खरीद लाये है तुमसे
लगाया था बाज़ार इश्क का ख़ता तेरी है
वक्त की शाख से टूट रहे है यादों के पत्ते
मौसम पतझड़ नहीं बेरूखी की हवा तेरी है
वाह उम्दा ।हर शेर लाजवाब।
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,बहुत खूब!नववर्ष मंगलमय हो ।
ReplyDeleteबहुत खूब.... आदरणीया
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteश्वेता जी !अत्यन्त सुन्दर👌👌👌👌
ReplyDeleteमंगलकामनाएं । सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-01-2019) को "नया साल आया है" (चर्चा अंक-3204) पर भी होगी।
Delete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Very Nice.....
ReplyDeleteबहुत प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
मेरे ब्लाॅग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत...
Happy New Year
....नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteनया वर्ष मंगलमय हो !
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ReplyDeleteइतने शिकवे, इतनी शिक़ायत, बुरी ये आदत तेरी है,
ReplyDeleteदुनिया हम दोनों पे हँसेगी, ना तेरी, ना मेरी है.