बादामी होता जीवन का व्याकरण,
चाहती हूं कि उग ही आए कोई कविता
अंकुरित हो जाए कोई भाव,
प्रस्फुटित हो जाए कोई विचार
फूटने लगे ललछौंही कोंपलें ...
मेरी हथेली की ऊर्वरा शक्ति
सिर्फ जानते हो तुम
और तुम ही दे सकते हो
कोई रंगीन सी उगती हुई कविता
इस 'रंगहीन' वक्त में....
-स्मृति आदित्य
वाह
ReplyDeleteजी, बहुत शुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-01-2019) को "सरदी ने रंग जमाया" (चर्चा अंक-3218) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद
Deleteऔर तुम ही दे सकते हो
ReplyDeleteकोई रंगीन सी उगती हुई कविता
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
धन्यवाद
Deleteबहुत खूब ... गहरे भाव ....
ReplyDeleteधन्यवाद
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