Wednesday, May 31, 2017

रेशमाबाई.............डॉ. भावना














रेशमाबाई
सिर्फ एक नाम नहीं
रेडलाइट एरिया की औरत की

यह पहचान है
पुरूष की पाशविक प्रवृति की

औरत की लाचारी
भूख की अकुलाहट
अशिक्षा रूपी अंधकार
बेकार हाथ

जब तक नहीं रौंदते किसी को
तब तक कोई रेशमा
नहीं बनती "रेशमा बाई"

- डॉ. भावना 
मुजफ्फरपुर, बिहार.

Tuesday, May 30, 2017

कब किसे ऐतबार होता है.....सुशील यादव


कब किसे ऐतबार होता है
सात जन्म का प्यार होता है 

दिल की बस्ती रही उजड़ती सी 
सोलह उधर सिंगार होता है 

मनचले तो जहाँ - कहीं जाते 
शक़्ल दारोमदार होता है 

मानते हैं सभी, ख़ुदा होना 
काफ़िर का भी, संसार होता है 

किस कंधे की पड़े, हमें ज़रूरत 
कौन तब, तरफ़दार होता है
-सुशील यादव

(बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 2122 1122 22 ### २१२२१२१२ २२)

Monday, May 29, 2017

संवेदनाओं का पौधा.... भावना












अधिकांश औरतें
जब व्यस्त होती हैं खरीदने में
साड़ी और सलवार सूट

तो लेखिकाएं खरीदती हैं
अपने लिए
कुछ किताबें ,पत्रिकाएॅ और कलम

अधिकांश औरतें
जब ढूंढती हैं
इन्टरनेट पर
फैशन का ट्रेंड

तो लेखिकाएं तलाशती हैं
ऑनलाइन किताबों की लिस्ट

अधिकांश औरतें
जब नाखून में नेलपाॅलिश
पैरों मे महावर लगा
करती हैं खुद को सुंदर दिखने की जतन

तो लेखिकाएं
रंग छोड़ती नाखूनों से
पलटती हैं किताबों के पन्ने
या रिश्तों की मजबूती के लिए
शब्दों से उगाती हैं
संवेदनाओं का पौधा











-भावना 
मुजफ्फरपुर, बिहार.

Sunday, May 28, 2017

इंतक़ाम सा सवार था......सौरभ शेखर

यक़ीन मर गया मिरा, गुमान भी नहीं बचा
कहीं किसी ख़याल का निशान भी नहीं बचा

ख़मोशियाँ तमाम ग़र्क़ हो गयीं ख़लाओं में
वो ज़लज़ला था साहिबो बयान भी नहीं बचा.

नदी के सर पे जैसे इंतक़ाम सा सवार था
कि बाँध, फस्ल, पुल बहे, मकान भी नहीं बचा

हुजूम से निकल के बच गया उधर वो आदमी
इधर हुजूम के मैं दरमियान भी नहीं बचा
ज़मीं दरक गयी सुलगती बस्तियों की आग से
ग़ुबार वो उठा कि आसमान भी नहीं बचा

बिखरती-टूटती फ़सील नींव को हिला गयी
कि दाग़ ज़ात पर था, ख़ानदान भी नहीं बचा

तमाम मुश्किलों को हमने नींद में दबा दिया
खुला ये फिर कोई इम्तिहान भी नहीं बचा

- सौरभ शेखर 
09873866653

Saturday, May 27, 2017

इतिहास में आज: 27 मई..ताना-बाना

27 मई 1964 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आखिरी सांस ली. नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता माना जाता है.


जवाहरलाल नेहरू का निधन अचानक ही हुआ. नेहरू पहाड़ों पर छुट्टियां बिता कर लौटे थे. नई दिल्ली में उन्हें सुबह सीने में दर्द की शिकायत हुई. डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें नहीं बचाया जा सका. निधन के वक्त नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी सिराहने पर मौजूद थी. नेहरू के निधन की जानकारी केंद्रीय मंत्री सी सुब्रमणियम ने सार्वजनिक की. राज्य सभा में रुआंसे गले से उन्होंने कहा, "प्रकाश नहीं रहा."
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के धुर आलोचक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि वे महान लोकतांत्रिक मूल्यों वाले नेता थे. नेहरू ने तमाम मुश्किलें उठाकर धर्मनिरपेक्ष ढांचे की नींव रखी और उसकी पूरी शक्ति से हिफाजत भी की. संसद में आलोचना करने वालों की भी वो पीठ थपाया करते थे.
नेहरू के करिश्माई नेतृत्व के कायल दुनिया भर के कई नेता रहे. इन्हीं में से एक थे सोवियत संघ के पूर्व राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव. गोर्बाचोव जब छात्र थे, तब वो कॉलेज बंक कर नेहरू का भाषण सुनने गए. मिखाइल गोर्बाचोव ने ही पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण में निर्णायक भूमिका निभाई.
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच छिड़े शीत युद्ध के कारण नेहरू ने गुट निरपेक्ष आंदोलन की भी शुरुआत की. वो चाहते थे कि दुनिया लोकतांत्रिक रहे, दो ध्रुवों में न बंट जाए. नेहरू के कार्यकाल में भारत में अच्छी शिक्षा वाले कॉलेज खुले. गांवों और कस्बों के विकास में स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए पॉलीटेक्निक, आईआईटी और आईआईएम जैसे कॉलेज खोले गए.

कई विश्लेषकों के मुताबिक नेहरू ने वह कर दिखाया जो पाकिस्तान में मोहम्मद अली जिन्ना नहीं कर सके. नेहरू ने भारत को किसी दूसरे देश पर निर्भर होने के बजाए अपने पैरों पर खड़े होने का आत्मविश्वास दिया.



Friday, May 26, 2017

वसुधैव कुटुम्बकम.................प्रभांशु कुमार


ना मुसलमान खतरे में है
ना हिन्दू खतरे में है
धर्म और मजहब से बँटता
इंसान खतरे में है

ना राम खतरे में है
ना रहमान खतरे में है
सियासत की भेंट चढ़ता
भाईचारा खतरे में है

ना कुरान खतरे में है
ना गीता खतरे में है
नफरत की दलीलों से
इन किताबों का ज्ञान खतरे में है

ना मस्जिद खतरे में है
ना मंदिर खतरे में है
सत्ता के लालची हाथों
इन दीवारों की बुनियाद खतरे में है

धर्म और मजहब का चश्मा
उतार कर देखो दोस्तों
अब तो हमारा
हिन्दुस्तान खतरे में है

-प्रभांशु कुमार
133/11ए अवतार टॉकीज के पीछे तेलियरगंज
इलाहाबाद- 211004
मो-7376347866


Thursday, May 25, 2017

बुरा क्या है हकीकत का अगर इज़हार हो जाए.....सतविन्दर कुमार

किसी मरते को जीने का वहाँ अधिकार हो जाए
अगर सहरा में पानी का ज़रा दीदार हो जाए

ये गिरना भी सबक कोई सँभलने के लिए होगा
मिलेगी कामयाबी हौंसला हर बार हो जाए

वफ़ा करके नहीं मिलती वफ़ा सबको यहाँ यारो
किसी की जीत उल्फत में,किसी की हार जाए

कि खुलकर आज कह डालो दबी है बात जो दिल में
*बुरा क्या है हकीकत का अगर इज़हार हो जाए*

खमोशी को हमेशा ही समझते हो क्यों कमजोरी?
यही गर्दिश में इंसाँ का बड़ा औज़ार हो जाए

सितमगर सोच कर करना सितम तू और लोगों पर
यही तेरी ख़ता उनका कहीं हथियार हो जाए
-सतविन्दर कुमार
ओपन बुक ऑन लाईन से

Wednesday, May 24, 2017

राजनीतिज्ञ..........राम कृष्ण खुराना

प्राचीन काल में एक जंगल में एक शेर राज्य किया करता था। उसके तीन मंत्री थे। बन्दर, भालू और खरगोश। दरबार लगा हुआ था। तीनों मंत्री राजा के इर्द-गिर्द बैठे हुए थे। अचानक शेर ने जुम्हाई लेने के लिए
मुँह खोला तो उसके पास ही बैठा भालू बोल पड़ा – "जहांपनाह, आप रोज़ सुबह उठ कर टुथ-पेस्ट अवश्य किया करें। आपके मुँह से बदबू आती है।"
शेर का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वह गरज कर बोला –
 "यू ब्लडी। तेरी यह मज़ाल?" शेर ने एक झपटा मारा और भालू को खा गया।
दूसरे दिन जब शेर दरबार में आया तो उसने बन्दर से पूछा – 
"मंत्री जी, बताईये हमारे मुँह से कैसी गन्ध आ रही है?"
बन्दर ने भालू का अंत अपनी नंगी आँखों से देखा था। वह हाथ जोड़ कर बोला – वल्लाह जहांपनाह। क्या बात है? आप हँसते हैं तो फूल गिरते हैं। जब आप बोलते हैं तो मोती झड़ते हैं। आपके मुँह से इलायची की ख़ुशबू आती…!"
"शट-अप," शेर ने बन्दर को अपनी बात पूरी करने का अवसर भी न दिया। वह बोला- "हम जंगल के राजा हैं। रोज़ कई जानवरों को मार कर खाते हैं। हमारे मुँह से इलायची की ख़ुशबू कैसे आ सकती है? तुम झूठ बोलते हो।" इतना कहकर शेर बन्दर को भी हज़म कर गया।
तीसरे दिन शेर ने अपने तीसरे मंत्री खरगोश से भी वही सवाल किया।
खरगोश दोनों का हश्र देख चुका था। वह हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। एक क़दम पीछे हट कर, सिर झुका कर बोला – 
"गुस्ताखी माफ़ हो सरकार। मुझे आजकल ज़ुकाम लगा हुआ है। जिसके कारण मैं आपके प्रश्न का उत्तर दे पाने में असमर्थ हूँ।"
शेर कुछ नहीं बोला।
खरगोश राजनीतिज्ञ था।
-राम कृष्ण खुराना
डेल्टा, (ब्रिटिश कोलंबिया) कैनेडा

Tuesday, May 23, 2017

रास्तों पर किर्चियाँ फैला रहा....मनन कुमार सिंह


वह जमीं पर आग यूँ बोता रहा
और चुप हो आसमां सोया रहा ।1।

आँधियों में उड़ गये बिरवे बहुत
साँस लेने का कहीं टोटा रहा ।2।

डुबकियाँ कोई लगाता है बहक
और कोई खा यहाँ गोता रहा ।3।

पर्वतों से झाँकती हैं रश्मियाँ
भोर का फिर भी यहाँ रोना रहा ।4।

हो गयी होती भली अपनी गजल
मैं पराई ही कथा कहता रहा ।5

चाँदनी छितरा गयी अपनी सिफत
गिनतियों में आजकल बोसा रहा ।6।

पोंछ देता अश्क मुंसिफ,था सुना,
वज्म में करता वही सौदा रहा ।7।

मर्तबा जिसको मिला,सब भूलकर
रास्तों पर किर्चियाँ फैला रहा ।8।

दिन तुम्हारे भी फिरेंगे,यह सुना
आदमी को आदमी फुसला रहा ।9।
- मनन कुमार सिंह
ओपन बुक ऑन लाईन से

Monday, May 22, 2017

और हम तैयार हो गये.......गौतम कुमार “सागर”









दंगो में चमचे ,
चिमटे भी हथियार हो गये
भीड़ जहाँ देखी..
.... उसके तरफदार हो गये !
शोहरतमंदों का ग्राफ.....
नीचे गिरा
तो कब्र बन गये
और उँचा हुआ तो..
गर्दने ऐंठ गयी
कुतुब मीनार हो गये !
अजब रोग है ...
इन खूब अमीर
मगर गुनाहगार लोगों का
मुक़दमे की........
हर तारीख पे ........
बीमार हो गये !
सियासत गंभीर मुद्दा
..... या अँग्रेज़ी वाला “फन “
क़व्वाली-ए-चुनाव में........
बेसुरे भी
फनकार हो गये !
बचपन में........
माँ जब स्कूल भेजती थी
बालों में तेल चुपड़ कर..
कंघी की... और  ह्म तैयार हो गये !
-गौतम कुमार “सागर”

Sunday, May 21, 2017

ये शेष रह जाएंगे...अंजना बाजपेई











कुछ गोलियों की आवाजें
बम के धमाके ,
फैल जाती है खामोशी ...
नहीं, यह खामोशी नहीं 
सुहागिनों का, बच्चों का,
मां बाप का करूण विलाप है,
मूक रूदन है प्रकृति का ,
धरती का, आकाश का .....

जलेंगी चिताएं और विलीन हो जायेंगे शरीर
जो सिर्फ शरीर ही नहीं

प्यार है, उम्मीदें है, विश्वास है, आशा है ,
बच्चों के, भाई बहनों के, पत्नी, माँ बाप और
सभी अपनों के
वह सब भी जल जायेंगे
विलीन हो जायेंगे शरीर
पंचतत्वों में धुँआ बनके, राख बनके ,
आकाश, हवा, पानी मिट्टी और अग्नि में 
सब विलीन हो जायेंगे ...

कौन कहेगा उनके बच्चों से - 
बेटा आप खूब पढ़ो मै हूँ ना ?
कौन उनको प्यार देगा, 
जिम्मेदारी उठायेगा ??

कैसे बेटियाँ बाबुल के गले लगकर विदा होंगी ?
उनकी शादी बिन बाबुल के कैसे होगी?

बुजुर्ग माँ, पिता, पत्नी, बहन, भाई 
सबके खामोश आँसू बह रहे,
दर्द समेटे 
कैसे जी रहे उनको कौन संभालेगा?

ये सारे कर्तव्य शेष रह जायेंगे ,
ये विवशता के आँसू, 
ये पिघलते सुलगते दर्द बन जायेगें,
ये हवा में रहेंगे 
सिसकियाँ बनकर, 
पानी में मिलेंगे पिघले दर्द बनकर ,
मिट्टी में रहेंगे, आकाश में, बादल में रहेंगे,

ये कहीं विलीन ना हो सकेंगे
मिट ना सकेंगे.....
इन्हें कोई पूरा नहीं कर सकेगा, 
ना सरकार, ना रिश्तेदार ,
ये कर्तव्य, ये फर्ज 
अनुत्तरित प्रश्न बन जायेगे ,
ये शेष रहेंगे, ये शेष रह जाएंगे...
-अंजना बाजपेई
जगदलपुर (बस्तर )
छत्तीसगढ़....

Saturday, May 20, 2017

वो दरबदर हो गया है....विशाल मौर्य विशु


जमाने को भी ये खबर हो गया है
मुहब्बत तो तनहा सफर हो गया है

ना तो दिन ढलते हैं ना ही रातें गुजरती
जुदाई का  ऐसा  असर  हो गया है

जहाँ ख्वाबों का मेला लगता था हर पल
शहर दिल  का वो  दरबदर हो गया है

उसे चाहा था हमने साँसों की तरह
किसी और का वो मगर हो गया है
-विशाल मौर्य विशु

Friday, May 19, 2017

दो क्षणिकाएँ..... नादिर खान












तुम अक्सर कहते रहे
मत लिया करो
मेरी बातों को दिल पर
मज़ाक तो मज़ाक होता है
ये बातें जहाँ शुरू
वहीं ख़त्म ....
और एक दिन
मेरा छोटा सा मज़ाक
तार –तार कर गया
हमारे बरसों पुराने रिश्ते को
न जाने कैसे.........













  



घर की मालकिन ने
घर की नौकरानी को
सख्त लहजे में चेताया
आज महिला दिवस है
घर पर महिलाओं का प्रोग्राम है
कुछ गेस्ट भी आयेंगे
खबरदार !
जो कमरे से बाहर आई
टांगें तोड़ दूँगी........
-नादिर खान 

.

Thursday, May 18, 2017

जीने की एक वजह काफी है.....विभा परमार


तलाशने की
कोशिश करती हूँ
जीवन से बढ़ती

उदासीनता की वजहें
रोकना चाहती हूं
अपने भीतर पनप रही
आत्मघाती प्रवृत्ति को
पर नजर आते हैं
धूप-छांव से इतने रंज औ गम
रेत की आंधियों सी मिली चोटें
और सूख चुकी पत्तियों सी उम्मीदें
कि न जीने के कारण तलाशना छोड़,
एक बार फिर से बारिश में
बाहें फैलाए जी भर के भीगूं
-विभा परमार