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Wednesday, August 30, 2017

यूँ धड़के जैसे तुम हो आए.....फरिहा नक़वी


बीते ख़्वाब की आदी आँखें कौन उन्हें समझाए 
हर आहट पर दिल यूँ धड़के जैसे तुम हो आए 

  ज़िद में आ कर छोड़ रही है उन बाँहों के साए 
  जल जाएगी मोम की गुड़िया दुनिया धूप-सराए 

 शाम हुई तो घर की हर इक शय पर आ कर झपटे 
 आँगन की दहलीज़ पे बैठे वीरानी के साए 

 हर इक धड़कन दर्द की गहरी टीस में ढल जाती है 
 रात गए जब याद का पंछी अपने पर फैलाए 

 अंदर ऐसा हब्स था मैं ने खोल दिया दरवाज़ा 
 जिस ने दिल से जाना है वो ख़ामोशी से जाए 

  किस किस फूल की शादाबी को मस्ख़ करोगे बोलो !!! 
 ये तो उस की देन है जिस को चाहे वो महकाए

- फरिहा नक़वी


Sunday, August 20, 2017

देख तेज़ाब से जले चेहरे .....फरिहा नक़वी

लाख दिल ने पुकारना चाहा 
मैं ने फिर भी तुम्हें नहीं रोका 

तुम मिरी वहशतों के साथी थे 
कोई आसान था तुम्हें खोना? 

तुम मिरा दर्द क्या समझ पाते 
तुम ने तो शेर तक नहीं समझा 

क्या किसी ख़्वाब की तलाफ़ी है? 
आँख की धज्जियों का उड़ जाना 

इस से राहत कशीद कर!! दिन रात 
दर्द ने मुस्तक़िल नहीं रहना 

आप के मश्वरों पे चलना है? 
अच्छा सुनिए मैं साँस ले लूँ क्या? 

ख़्वाब में अमृता ये कहती थी 
इन से कोई सिला नहीं बेटा 

देख तेज़ाब से जले चेहरे 
हम हैं ऐसे समाज का हिस्सा 

लड़खड़ाना नहीं मुझे फिर भी 
तुम मिरा हाथ थाम कर रखना 

वारिसान-ए-ग़म-ओ-अलम हैं हम 
हम सलोनी किताब का क़िस्सा 

सुन मिरी बद-गुमाँ परी!! सुन तो 
हर कोई भेड़िया नहीं होता 

-फरिहा नक़वी