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Sunday, December 23, 2018

सुविचार....रचनाकार अज्ञात

धार वक़्त की बड़ी प्रबल है, इसमें लय से बहा करो,
जीवन कितना क्षणभंगुर है, मिलते जुलते रहा करो।

यादों की भरपूर पोटली, क्षणभर में न बिखर जाए,
दोस्तों की अनकही कहानी, तुम भी थोड़ी कहा करो।

हँसते चेहरों के पीछे भी, दर्द भरा हो सकता है,
यही सोच मन में रखकर के, हाथ दोस्त का गहा करो।

सबके अपने-अपने दुःख हैं, अपनी-अपनी पीड़ा है,
यारों के संग थोड़े से दुःख, मिलजुल कर के सहा करो।

किसका साथ कहाँ तक होगा, कौन भला कह सकता है,
मिलने के कुछ नए बहाने नित, रचते-बुनते रहा करो।

मिलने जुलने से कुछ यादें, फिर ताज़ा हो उठती हैं,
इसीलिए यारो  बिन कारण भी, मिलते जुलते रहा करो।


Sunday, September 3, 2017

औकात.....रचनाकार अज्ञात


एक माचिस की तिल्ली, 
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे, 
कुछ घण्टे में राख.....
बस इतनी-सी है 
आदमी की औकात !!!!

एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया , 
अपनी सारी ज़िन्दगी ,
परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट ,
तो कहीं फुसफुसाहट ....
अरे जल्दी ले जाओ 
कौन रखेगा सारी रात...
बस इतनी-सी है 
आदमी की औकात!!!!

मरने के बाद नीचे देखा , 
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे .....
कुछ लोग ज़बरदस्त, 
तो कुछ ज़बरदस्ती 
रो रहे थे। 

नहीं रहा.. ........चला गया...
चार दिन करेंगे बात.........
बस इतनी-सी है 
आदमी की औकात!!!!!

बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा,
सामने अगरबत्ती जलायेगा ,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी...
अखबार में अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी.........
बाद में उस तस्वीर पे,
जाले भी कौन करेगा साफ़...
बस इतनी-सी है 
आदमी की औकात !!!!!!

जिन्दगी भर,
मेरा- मेरा- मेरा किया....
अपने लिए कम ,
अपनों के लिए ज्यादा जिया...
कोई न देगा साथ...
जायेगा खाली हाथ....
क्या तिनका ले जाने की भी है हमारी औकात ???
ये है हमारी औकात
फिर घमंड कैसा ?
-रचनाकार अज्ञात