एक तितली गूँजती है
फूल की पंखुड़ियों पर
तो रंग खिलखिलाते हैं ।
चन्द्रमा गूँजता है
पृथ्वी की कक्षा में
तो रोशनी मुस्कुराती है
गहरी रात में भी ।
धरती के भार में गूँजता है बीज
तो साँसें लय मे होकर
आ जाती हैं सम पर ।
समुद्र के भीतर गूँजता है अतल
तो पानी का संगीत बजता है ।
भोर की पत्ती पर
गूँजती है ओस की बूँद
तो सूरज जागता है ।
देह के भीतर
गूँजती है देह
तो जनमता है
जीवन का अनुनाद ।
-विमलेन्दु