नहीं ज़िंदगी
यूँ नग्न न चली आया करो
कुरूप लगती हो
बेहतर है कि कुछ लिबास पहन लो
कि जब शिशुओं के पास जाओ
तो तंदुरुस्ती का लिबास ओढ़ो..
जब बेटियों के पास जाओ
तो यूँ तो ओढ़ सकती हो गुलाबी पुष्पगुच्छ से सजी चुनरी
या इंद्रधनुषी रंगों से सिली क़ुर्ती
परंतु सुनो
तुम सुरक्षा का लिबास ओढ़ना..
जो गर इत्तफ़ाक़न किसी स्त्री के पास पहुँचो
तो पहन कर जाना प्रेम बुना झालरदार सम्मान ..
जब बेटों के पास जाओ
तो समझ कर लिबास पहनना
मत पहनना उन्माद आक्रोश
पहनना ज़िम्मेदारी वाली उम्मीद ..
पुरुषों के पास संवेदनाओं से भरा पैरहन पहन कर जाना
जिसमें ईमानदारी के बटन लगे हो ..
सुनो ज़िंदगी
किसी आँख में आँसू का आवरण मत बनना
हाथों में मत उतरना गिड़गिड़ाहट बन कर ..
कि सुनो
शिशु की किलकारी
बालकों की खिलखिलाहट
बारिश का पानी
गीतों की सरगम
घर पहुँचने की ठेलमठेल
ये सब ख़ूबसूरत है
इन्हें पहन कर किसी का भी दरवाज़ा खटखटाओ..
फिर सुनो फुसफुसाहट वाली हँसी..
-निधि सक्सेना