अचानक आई बीमारी
दुर्घटना
या ऐसे ही किसी हादसे में
हताहत हुए लोगों को देखने
उनसे मिलने
उनके घर जाओ
या अस्पताल
उन्हें खून दो
और पैसा, यदि दे सको
नही तो जरूरत पड़ने पर कर्ज ही
उनके इलाज में मदद करो
जितनी और जैसी भी
मुमकिन हो या मांगी जाए
तुम भी जब कभी
हालात से मजबूर होकर
दुखों से गुजरोगे
तब तुम्हारा साथ देने
जो आगे आएंगे
वे वही नहीं होंगे
जिनकी तीमारदारी में
तुम हाजिर रहे थे
वे दूसरे ही लोग होंगे
मगर वे भी शायद
इसीलिए आगे आएंगे
कि उनके जैसे लोगों की
मुसीबत में मदद करने
तुम गए थे..
-पंकज चतुर्वेदी
...... तरंग, नई दुनिया
चलना सीखते ही
पहना जाती है, नानी
घुंघरुओं की पायल
रुनुन..झुनुन.....टुनुन...नुनुन
गूंजता है... दिन भर...
घर के भीतर,ठण्डे सलेटी फर्श पर
शीघ्रता से....
और शीघ्रता से
बढ़ने लगी-पायल बंधी गोलाइयां
छोटी हो गई-पायलें
और कसने लगी,
उतार
खूब दौड़ लगाई
पत्थर बिछी गली की
तितलियों के पर पकड़ने
बादलों के श्वेत पद छूने
टिमटिमाते तारे
झोली में बटोर लेने को.
इस दौड़ में छूट गई
पत्थर वाली गली
काली सड़कों तक आते-आते
न रंगीली तितलियां थी
न बादलों का श्वेत पग,
सब ओर एक-सी
काली कोलतारी सड़कें
एक-सी बस्तियां
एक-से लोग
भूल जाती है रास्ता...।
पूछती है भीड़, घर का पता
पर..
सलेटी फर्श
पत्थर की गली
चौबारे का कमरा
याद है इतना भर उसे,
नाम- ठिकाना
कभी न जाना
और भीड़ में
हिचकियां लेकर
लगती है रोने.....।
क्यों हो गई पायल छोटी
क्यों पुरतीं नहीं
टखनें की गोलाइयां अब
क्यों सारी सड़कें/बस्तियां/मकान
हैं एक-से
और क्यों नहीं
किसी तरह
लौट सकती
मैं ?
ना......नी... !!
-कविता वाचक्नवी
अमृतसर में जन्म
साहित्य और भाषा की अध्येता
ब्रिटेन में रहते हुए
लेखन व अध्ययन से जुड़ाव