Monday, January 21, 2019

सूरज तुम जग जाओ न...श्वेता सिन्हा

धुँधला धुँधला लगे है सूरज
आज बड़ा अलसाये है
दिन चढ़ा देखो न  कितना
क्यूँ न ठीक से जागे है
छुपा रहा मुखड़े को कैसे
ज्यों रजाई से झाँके है

कुछ तो करे जतन हम सोचे
कोई करे उपाय है
सूरज को दरिया के पानी मेंं
धोकर आज सुखाते हैंं
चमचम फिर से चमके वो
वही नूर ले आते हैंं

सब जन ठिठुरे उदास हैंं बैठे
गुनगुनी धूप भर जाओ न
देकर अपनी मुस्कान सुनहरी
कलियों के संग गाओ न
नील गगन पर दमको फिर से
संजीवन तुम भर जाओ न
मिलकर धरती करे ठिठोली
सूरज तुम जग जाओ न
     - श्वेता सिन्हा

8 comments:

  1. एई नई सुबह को गुहार लगाती सुन्दर रचना, आदरणीय श्वेता जी।

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  2. प्रिय श्वेता जी लाजबाब सृजन आप की लेखनी का जबाब नहीं
    सादर

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  3. 'सूरज को दरिया के पानी में
    धोकर आज सुखाते हैं.'
    बहुत सुन्दर श्वेता ! कहते हैं - 'जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि.' तुमने तो रवि को ही सूखने के लिए अलगनी तक पहुंचा दिया !

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-01-2019) को "गंगा-तट पर सन्त" (चर्चा अंक-3224) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    उत्तरायणी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. वाह!!!
    बहुत लाजवाब....
    सूरज को दरिया के पानी मेंं
    धोकर आज सुखाते हैंं
    चमचम फिर से चमके वो
    वही नूर ले आते हैंं

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  6. शानदार कविता।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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