Tuesday, January 15, 2019

उगती हुई कविता...... स्मृति आदित्य

रख दो 
इन कांपती हथेलियों पर 
कुछ गुलाबी अक्षर 
कुछ भीगी हुई नीली मात्राएं 
बादामी होता जीवन का व्याकरण, 
चाहती हूं कि उग ही आए कोई कविता
अंकुरित हो जाए कोई भाव, 
प्रस्फुटित हो जाए कोई विचार 
फूटने लगे ललछौंही कोंपलें ...
मेरी हथेली की ऊर्वरा शक्ति
सिर्फ जानते हो तुम 
और तुम ही दे सकते हो 
कोई रंगीन सी उगती हुई कविता 
इस 'रंगहीन' वक्त में.... 
-स्मृति आदित्य

8 comments:

  1. Replies
    1. जी, बहुत शुक्रिया

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-01-2019) को "सरदी ने रंग जमाया" (चर्चा अंक-3218) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. और तुम ही दे सकते हो
    कोई रंगीन सी उगती हुई कविता
    हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

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  4. बहुत खूब ... गहरे भाव ....

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