Wednesday, September 4, 2013

इस मफ़लिसी के दौर से बचकर रहा करे..........अनिरुध्द सिन्हा



इस मफ़लिसी के दौर से बचकर रहा करे
बाहर ज़मीं की धूल है अंदर रहा करे ।

दहलीज़ को खंगालती रहती हैं बारिशें
मिट्टी के इन घरों में भी छप्पर रहा करे ।

जिससे कि चाँद ख्वाब के दामन में रह सके
ऑंखों में वो यक़ीन का मंज़र रहा करे ।

रिश्तों को ऑंख से नहीं इतना गिराइए
कुछ तो बिछुड़ के मिलने का अवसर रहा करे ।

गलियों में एहतियात के नारों के बावजूद
तहदारियों के हाथ में पत्थर रहा करे ।

-अनिरुध्द सिन्हा

5 comments:

  1. बहुत ही लाजवाब..आभार यशोदा जी..

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  2. बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!

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  3. "रिश्तों को ऑंख से नहीं इतना गिराइए
    कुछ तो बिछुड़ के मिलने का अवसर रहा करे"....बहुत खूबसूरत

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