इस मफ़लिसी के दौर से बचकर रहा करे
बाहर ज़मीं की धूल है अंदर रहा करे ।
दहलीज़ को खंगालती रहती हैं बारिशें
मिट्टी के इन घरों में भी छप्पर रहा करे ।
जिससे कि चाँद ख्वाब के दामन में रह सके
ऑंखों में वो यक़ीन का मंज़र रहा करे ।
रिश्तों को ऑंख से नहीं इतना गिराइए
कुछ तो बिछुड़ के मिलने का अवसर रहा करे ।
गलियों में एहतियात के नारों के बावजूद
तहदारियों के हाथ में पत्थर रहा करे ।
-अनिरुध्द सिन्हा
Bahut hi lajawab gazal hai ... Har sher umda ...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब..आभार यशोदा जी..
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDelete"रिश्तों को ऑंख से नहीं इतना गिराइए
ReplyDeleteकुछ तो बिछुड़ के मिलने का अवसर रहा करे"....बहुत खूबसूरत