पिसती चक्की थी? या मां?..................दिविक रमेश
रोज सुबह मुंह अंधेरे दूध बिलोने से पहले मां चक्की पीसती और मैं आराम से सोता तारीफों में बंधी मां जिसे मैंने कभी सोते नहीं देखा आज जवान होने पर एक प्रश्न घुमड़ आया है पिसती चक्की थी? या मां? -दिविक रमेश
Pisti to maa hai ... Vo bhi apne bachon ke liye ...
ReplyDeleteBhavpoorn rachnaa ...
बहुत गंभीर प्रश्न है ...उत्तर भी कोई तिलिस्म नहीं
ReplyDeleteपिसती तो माँ ही थी
....आपकी सोच की गहराई को नमन
bahut sundar prastuti....saadar...
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 06.09.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
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ReplyDeleteभावुक,मन को नम करती माँ की सच्ची अनुभूति
बहुत सुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
"ज्योति"
आग्रह है यहां भी पधारें
कब तलक बैठें---
oy,hoy.......kya bat khi waaaaah
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteदिल को छूती हुई रचना .. बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार। --दिविक रमेश
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