क्यूँ खुद में कैद होकर
लिए फिरता हूँ खुद को
दर्द और ग़मों से भरा
खंडहर सा मकान कोई
साथ है ख्याबों के कारवाँ
उनकी यादों को थामे हुए
चल रहे हैं यूं थके थके से
जैसे भटके हों लंबे सफर में
गुजरे लम्हे डरा रहे हैं
रात के काले साये बनकर
धड़कनों पे पहरा है कोई
मौन हैं जज़्बात दिल के
वक़्त की गहरी धुन्ध में
मिट गए हैं कुछ निशान
बस रह गयी हैं तो सिर्फ
इस दिल में तुम्हारी यादें
-मनीष गुप्ता
गुजरे लम्हे डरा रहे हैं
ReplyDeleteरात के काले साये बनकर
धड़कनों पे पहरा है कोई
मौन हैं जज़्बात दिल के
खरी खरी बातें
सुंदर रचना...
ReplyDeleteआप की ये रचना आने वाले शनीवार यानी 28 सितंबर 2013 को ब्लौग प्रसारण पर लिंक की जा रही है...आप भी इस प्रसारण में सादर आमंत्रित है... आप इस प्रसारण में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...
उजाले उनकी यादों के पर आना... इस ब्लौग पर आप हर रोज कालजयी रचनाएं पढेंगे... आप भी इस ब्लौग का अनुसरण करना।
आप सब की कविताएं कविता मंच पर आमंत्रित है।
हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
इस के लिये आप को मात्रkuldeepsingpinku@gmail.com पर मिल भेजकर निमंत्रण लिंक प्राप्त करना है।
मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]
वक़्त की गहरी धुन्ध में
ReplyDeleteमिट गए हैं कुछ निशान
बस रह गयी हैं तो सिर्फ
इस दिल में तुम्हारी यादें.bahut badhiya
गुजरे लम्हे डरा रहे हैं
ReplyDeleteरात के काले साये बनकर
हृदयस्पर्शी जज़्बात बधाई
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया-
man mey ek kasak uthti hai is rachna ko padh kar......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक आज शनिवार (28-09-2013) को ""इस दिल में तुम्हारी यादें.." (चर्चा मंचःअंक-1382)
पर भी होगा!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
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