मैं टूटकर उसे चाहूँ यह इख्तियार भी हो
समेट लेगा मुझे इसका एतबार भी हो
नई रुतों में वो कुछ और भी करीब आए
गई रुतें का सुलगता-सा इंतज़ार भी हो
मैं उसके साथ को हर लम्हा मोतबर जानूँ
वो हमसफर है तो मुझसा ही बेदयार भी हो
मिरे खुलूस का अंदाज़ ये भी सच्चा है
रखूं न रब्त मगर दोस्ती शुमार न हो
सफ़र पे निकलूं तो रस्में-सफ़र बदल जाए
किनारा बढ़ के कभी खुद हमकिनार भी हो.
-फ़ातिमा हसन
इख्तियारः अधिकार, एतबारः भरोसा, लम्हाः क्षण, मोतबरः विश्वस्त
बेदयारः बेघर, खुलूसः निश्छलता, रब्तः संबंध, हमकिनारः आलिंगित
सैयदा अनीस फातिमा....( फ़ातिमा हसन )
जन्मः 25, दिसम्बर, 1953, करांची, पाकिस्तान
जन्मः 25, दिसम्बर, 1953, करांची, पाकिस्तान
wah ! sundar gazal
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआज की चर्चा : ज़िन्दगी एक संघर्ष -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-005
हिंदी दुनिया -- शुभारंभ
https://www.facebook.com/hindi.blogger.caupala
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteलिंक ५.- चाहत और मोहब्बत का बहुत ही सुन्दर संयोजन किये है फातिमा हसन ने ,एक सुन्दर ग़ज़ल को शेयर करने के लिए आपका आभार।
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