किस क़दर सर्द है यह रात-अंधेरे ने कहा
मेरे दुशमन तो हज़ारों हैं - कोई तो बोले
चांद की क़ाश भी तहलील हुई शाम के साथ
और सितारे तो संभलने भी न पाए थे अभी
कि घटा आई, उमड़ते हुए गेसू खोले
वह जो आई थी तो टूटके बरसी होती
मगर एक बूंद भी टपकी न मेरे दामन पर
सिर्फ़ यख़-बस्ता हवाओं के नुकीले झोंके
मेरे सीने में उतरते रहे, खंजर बनकर
कोई आवाज नहीं- कोई भी आवाज नहीं
चार जानिब से सिमटता हुआ सन्नाटा है
मैंनें किस कर्ब से इस शब का सफ़र काटा है
दुशमनों! तुमको मेरे जब्रे-मुसलसल की कसम
मेरे दिल पर कोई घाव ही लगाकर देखो
वह अदावत ही सही, तुमसे मगर रब्त तो है
मेरे सीने पे अलाव ही लगाकर देखो
मेरे दुशमन तो हज़ारों हैं - कोई तो बोले
चांद की क़ाश भी तहलील हुई शाम के साथ
और सितारे तो संभलने भी न पाए थे अभी
कि घटा आई, उमड़ते हुए गेसू खोले
वह जो आई थी तो टूटके बरसी होती
मगर एक बूंद भी टपकी न मेरे दामन पर
सिर्फ़ यख़-बस्ता हवाओं के नुकीले झोंके
मेरे सीने में उतरते रहे, खंजर बनकर
कोई आवाज नहीं- कोई भी आवाज नहीं
चार जानिब से सिमटता हुआ सन्नाटा है
मैंनें किस कर्ब से इस शब का सफ़र काटा है
दुशमनों! तुमको मेरे जब्रे-मुसलसल की कसम
मेरे दिल पर कोई घाव ही लगाकर देखो
वह अदावत ही सही, तुमसे मगर रब्त तो है
मेरे सीने पे अलाव ही लगाकर देखो
-अहमद नदीम क़ासमी
चांद की क़ाशः टुकड़ा, तहलीलः घुलना, यख़-बस्ताःबहुत ठण्डी
जानिबः ओर, कर्बः दुख, जब्रे-मुसलसलः निरंतर अत्याचार
अदावतः दुश्मनी, रब्तः लगाव
यह रचना मुझे दैनिक भास्कर के रसरंग पृष्ट से प्राप्त हुई
जानिबः ओर, कर्बः दुख, जब्रे-मुसलसलः निरंतर अत्याचार
अदावतः दुश्मनी, रब्तः लगाव
यह रचना मुझे दैनिक भास्कर के रसरंग पृष्ट से प्राप्त हुई
अहमद नदीम क़ासमी
परिचय
मशहूर पाकिस्तानी श़ायर और साहित्यकार
जन्मः 20 नवम्बर,1916, सरगोधा
मृत्युः 10 जुलाई,2006, लाहोर
परिचय
मशहूर पाकिस्तानी श़ायर और साहित्यकार
जन्मः 20 नवम्बर,1916, सरगोधा
मृत्युः 10 जुलाई,2006, लाहोर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (30-09-2013) गुज़ारिश खाटू श्याम से :चर्चामंच 1399 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पहले पकमेंट में गलती हो गयी थी...इसलिए दूसरा कमेंट कर रहा हूँ।
ReplyDelete--
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (30-09-2013) गुज़ारिश खाटू श्याम से :चर्चामंच 1399 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeletewaah ......kitni sundar khawahish.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर साझा करने केलिये आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete"मगर एक बूँद टपकी न मेरे दामन से "
सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteब्लॉग"दीप" में 500 ब्लोग्स
सुंदर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :-01/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -14पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
उम्दा ग़ज़ल दिल को छू गयी .. :)
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDelete:-)