ज़मीर और मतलब की यलग़ार में
उजागर हुए ऐब किरदार में
गिरा है ज़मीर ऐसा इंसान का
क़बा बेच आया है बाज़ार में
न पूछो वहाँ ऐश राजाओं के
जहां संत लिपटे हों व्यभिचार में
तजर्बे ये हासिल हैं इक उम्र का
निहाँ हैं जो चांदी के हर तार में
तमद्दुन ने हम को अता क्या किया
कि इंसानियत थी फ़क़त ग़ार में
गुलों की नज़ाकत ने ताईद की
अजब सी कशिश है हर इक ख़ार में
कोई नर्म कोंपल उभर आयेगी
“इन्हीं ज़र्द पत्तों के अंबार में”
न “मुमताज़” जीता यहाँ सच कभी
ये सब मंतक़ें यार बेकार में
-मुमताज़ नाज़ां 09867641102
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आप भी पढ़ सकते हैं इसे यहाँ- http://wp.me/p2hxFs-1oH
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चित्र गूगल महराज की कृपा से
good nice
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा....
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 29/09/2013 को पीछे कुछ भी नहीं -- हिन्दी ब्लागर्स चौपाल चर्चा : अंक-012 पर लिंक की गयी है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें। सादर ....ललित चाहार
सुंदर गजल |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और कमल
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय
ReplyDeleteकिसी B.S.N.L के नंबर का बैलेंस जाने इस ट्रिक से