इस बार वह अपनी आँखो में
शहद भर कर लौटा
मैंनें मान लिया
अब मेरे दिन
मधुमक्खियों के सहारे ही कटेंगे...
शहद भर कर लौटा
मैंनें मान लिया
अब मेरे दिन
मधुमक्खियों के सहारे ही कटेंगे...
जब वह अपने
बगल में आकाश को दबा कर
घर आता है
तो मेरी आँखों में काले बादल घुमड़ आते हैं
इस सच पर अपनी अंगुली रख ही दूँ कि
अब हम दोनों के बीच
मूक समझौते
इसी तरह बिना किसी करतल ध्वनि के
पारित होते आए हैं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बढिया
बहुत ही सुन्दर मनमोहक प्रस्तुती
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