देखिये उन बस्तियों को, फिर जलाता कौन है।
देखिये उन कश्तियों को, फिर डुबाता कौन है॥
गश्त, एवं कर्फ्यू का नाम आजादी नहीं-।
देखिये उन गश्तियों को, फिर लगाता कौन हैं॥
हम सभी भूखों मरें, वे राज हम पर कर रहे-।
देखिये उन हस्तियों को, फिर बनाता कौन हैं॥
हमने अपने खून से, हर शब्द लिक्खा है जहां।
देखिये उन नश्तियों को, फिर जलाता कौन हैं॥
चलाते चमड़े के सिक्के, एक दिन के बादशाह।
देखिये उन भिश्तियों को, फिर बनाता कौन हैं॥
-श्रीराम मीणा
देखिये उन कश्तियों को, फिर डुबाता कौन है॥
गश्त, एवं कर्फ्यू का नाम आजादी नहीं-।
देखिये उन गश्तियों को, फिर लगाता कौन हैं॥
हम सभी भूखों मरें, वे राज हम पर कर रहे-।
देखिये उन हस्तियों को, फिर बनाता कौन हैं॥
हमने अपने खून से, हर शब्द लिक्खा है जहां।
देखिये उन नश्तियों को, फिर जलाता कौन हैं॥
चलाते चमड़े के सिक्के, एक दिन के बादशाह।
देखिये उन भिश्तियों को, फिर बनाता कौन हैं॥
-श्रीराम मीणा
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [02.09.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1356 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर ,
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11
umda prastuti .. sadar jsk
ReplyDeletebahut sundar rachna
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