Friday, September 6, 2013

कायम है मेरे दम से रौनक बहार में..........डॉ. माणिक विश्वकर्मा

   
किस्तों में बंट रहा हूं शहर हो रहा हूं मैं,
पनघट था बाँसुरी था कहर हो रहा हूं मैं।

अस्तित्व मेरा खतरे में पड़ गया है आज,
कटने लगा नदी था नहर हो रहा हूं मैं।

लहरों से खेलते हैं जो ताउम्र बेवजह,
उनको सबक सिखाने भँवर हो रहा हँ मैं।

मंदिर में रहा जब तक कोई जानता ना था,
बाजार में आते ही खबर हो रहा हँ मैं।

कायम है मेरे दम से रौनक बहार में,
लोगों को छाँव देने शजर हो रहा हँ मैं।

-डॉ. माणिक विश्वकर्मा

6 comments:

  1. सुंदर रचना...
    आप की ये रचना आने वाले शनीवार यानी 7 सितंबर 2013 को ब्लौग प्रसारण पर लिंक की जा रही है...आप भी इस प्रसारण में सादर आमंत्रित है... आप इस प्रसारण में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...



    कविता मंच[आप सब का मंच]


    हमारा अतीत [जो खो गया है उसे वापिस लाने में आप भी कुछ अवश्य लिखें]

    मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]

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  2. खूबसूरत नगीने से सजाती हैं
    आप अपने ब्लॉग को

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  4. भावो की अभिवयक्ति......

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