चाहता हूं
रुक जाए गति पृथ्वी की
काल से कहूं सुस्ता ले कहीं
आज मुझे बहुत प्यार करना है ज़िन्दगी से।
खोल दूंगा आज मैं
अपनी उदास खिड़कियां
झाड़ लूंगा तमाम जाले और गर्द
सुखा लूंगा सीलन-भरे परदे।
कहूँगा
सहमी खड़ी हवा से
आओ, आ जाओ आँगन में
मैं तुम्हें प्यार दूंगा,
जाऊँगा तुम्हारे पीछे-पीछे
खोजने एक अपनी-सी खुशबू
शरद के पत्तों-सा।
रात से कहूँगा
ले आओ ढ़ेर से तारे
सजा दो जंगल मेरे आसपास
मैं उन्हें आँखों की छुवन दूंगा।
खोल दूंगा आज
समेटी पड़ी धूप को
जाने दूंगा उसे
तितलियों के पंख सँवारने।
थामकर पृथ्वी की गति
रोककर कालचक्र
आज हो जाऊंगा मुक्त।
बहुत प्यार करना है ज़िन्दगी से।
--दिविक रमेश
चाहता हूं
ReplyDeleteरुक जाए गति पृथ्वी की
काल से कहूं सुस्ता ले कहीं
आज मुझे बहुत प्यार करना है ज़िन्दगी से।
चाहत तो सही है, काश ऐसा हो पाता !
आपको बधाई !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 27/09/2013 को
ReplyDeleteविवेकानंद जी का शिकागो संभाषण: भारत का वैश्विक परिचय - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः24 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
रोककर कालचक्र
ReplyDeleteआज हो जाऊंगा मुक्त।
बहुत प्यार करना है ज़िन्दगी से।.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.......
सुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
ReplyDeleteकभी इधर भी पधारिये ,