ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए
वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए
वीराँ हैं सहन ओ बाग़ बहारों को क्या हुआ
वो बुलबुलें कहाँ वो तराने किधर गए
है नज्द में सुकूत हवाओं को क्या हुआ
लैलाएँ हैं ख़मोश दिवाने किधर गए
उजड़े पड़े हैं दश्त ग़ज़ालों पे क्या बनी
सूने हैं कोह-सार दिवाने किधर गए
वो हिज्र में विसाल की उम्मीद क्या हुई
वो रंज में ख़ुशी के बहाने किधर गए
दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िन्दगी
'अख़्तर' वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए
-"अख्तर"शीरानी
"अख्तर"शीरानी
उर्दू के शायर,
असली नामः मो. दाऊद खान
जन्मः 4, मई 1905, टोंक, राजस्थान
मृत्युः सितम्बर,1948, लाहोर, पाकिस्तान
उम्दा गजल ,साझा करने के लिए आपका आभार ....
ReplyDeletewaaaaaah khub.........akhtar sherani urdu adab ke behtrin shayr hai...khas to sahab ki tggazul nazme behtrin hoti hai....aapn bhut kuch yad dila diya shukriya....dhanyvad
ReplyDeleteवो हिज्र में विसाल की उम्मीद क्या हुई
ReplyDeleteवो रंज में ख़ुशी के बहाने किधर गए
वाह ... बेहतरीन
बढ़िया ग़ज़ल । फॉण्ट का रंग कुछ ऐसा रखे कि पढने में सहुलियत हो । अभी थोड़ी दिक्कत हो रही है ।
ReplyDeleteमेरी रचना:- चलो अवध का धाम