Thursday, September 12, 2013

पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी...................मृणालिनी घुले








संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी।
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।

सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।

पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।

पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।

तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।

वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।

अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।

यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

- मृणालिनी घुले

14 comments:

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी ... मृणालिनी जी, सच लिखा है आपने कि हिंदी ही राष्ट्र के माथे की बिंदी है .. ह्रदय को छू लेने वाली प्रस्तुति !

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  3. बहुत सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति !!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी ..सच कहा..राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

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  5. आपने बहुत अच्छा लिखा है। इसीलिए गायत्री मंत्र के सबसे ज़्यादा अनुवाद हिंदी में ही हैं, शायद। देखिए-
    http://vedquran.blogspot.in/2012/03/3-mystery-of-gayatri-mantra-3.html

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  6. सुन्दर प्रस्तुति..

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  7. बहुत सुंदर. राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी.

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  8. “अजेय-असीम” -
    बहुत ही सुंदर लेखन ,
    हिंदी ही हैं ,जो सबको एक सूत्र में बाधती हैं |

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  9. बहुत खूब...हिंदी दि‍वस की अग्रि‍म बधाई स्‍वीकारें

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  10. सुन्दर रचना . हिंदी दिवस की बधाई

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  11. सुन्दर भाव सुन्दर अर्थ। सौदेश्य लेखन।

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  12. पहर वसन अंगरेजिया ,हिंदी करे विलाप ,

    अब अंग्रेजी सिमरनी जपिए प्रभुजी आप।

    पहर वसन अंगरेजिया उछले हिंदी गात ,

    नांच बलिए नांच ,देदे सबकू मात।

    अब अंग्रेजी हो गया हिंदी का सब गात ,

    अपनी हद कू भूलता देखो मानुस जात।


    सुन्दर भाव सुन्दर अर्थ। सौदेश्य लेखन।

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