Saturday, September 28, 2013

ज़मीर और मतलब की यलग़ार में.............मुमताज़ नाज़ां


ज़मीर और मतलब की यलग़ार में
उजागर हुए ऐब किरदार में

गिरा है ज़मीर ऐसा इंसान का
क़बा बेच आया है बाज़ार में

न पूछो वहाँ ऐश राजाओं के
जहां संत लिपटे हों व्यभिचार में

तजर्बे ये हासिल हैं इक उम्र का
निहाँ हैं जो चांदी के हर तार में

तमद्दुन ने हम को अता क्या किया
कि इंसानियत थी फ़क़त ग़ार में

गुलों की नज़ाकत ने ताईद की
अजब सी कशिश है हर इक ख़ार में

कोई नर्म कोंपल उभर आयेगी
“इन्हीं ज़र्द पत्तों के अंबार में”

न “मुमताज़” जीता यहाँ सच कभी
ये सब मंतक़ें यार बेकार में

-मुमताज़ नाज़ां 09867641102

यह रचना मुझे  lafzgroup.wordpress.com में पढ़ने को मिली
आप भी पढ़ सकते हैं इसे यहाँ- http://wp.me/p2hxFs-1oH
चित्र गूगल महराज की कृपा से



6 comments:

  1. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 29/09/2013 को पीछे कुछ भी नहीं -- हिन्दी ब्लागर्स चौपाल चर्चा : अंक-012 पर लिंक की गयी है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें। सादर ....ललित चाहार

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