Monday, September 2, 2013

आस्था.....................धर्मवीर भारती

रात
पर मैं जी रहा हूं निडर
जैसे कमल
जैसे पंथ
जैसे सूर्य
क्योंकि
कल भी हम मिलेंगे
हम चलेंगे
हम उगेंगे
और
वे सब साथ होंगे
आज जिनको रात ने भटका दिया है!
-धर्मवीर भारती

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