आँख उनसे मिली तो सजल हो गई
प्यार बढ़ने लगा तो ग़ज़ल हो गई
रोज़ कहते हैं आऊँगा आते नहीं
उनके आने की सुनके विकल हो गई
ख़्वाब में वो जब मेरे करीब आ गये
ख़्वाब में छू लिया तो कँवल हो गई
फिर मोहब्बत की तोहमत मुझ पै लगी
मुझको ऐसा लगा बेदख़ल हो गई
वक्त का आईना है लबों के सिफ़र
लब पै मैं आई तो गंगाजल हो गई
'तारा' की शाइरी किसी का दिल हो गई
ख़ुशबुओं से तर हर्फ़ फ़सल हो गई
-डॉ० (श्रीमती) तारा सिंह
सुन्दर
ReplyDeleteवाह वाह आफरीन तारा जी आफरीन
ReplyDelete👌👌👌👌👌👌👌👌👌
खुशबू से तर हर्फ़ फसल हो गई
भीनी भीनी सी महकी गजल हो गई !
वाह....
ReplyDeleteआँख उनसे मिली तो सजल हो गई
प्यार बढ़ने लगा तो ग़ज़ल हो गई
रोज़ कहते हैं आऊँगा आते नहीं
उनके आने की सुनके विकल हो गई
बेहतरीन गजल....
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-04-2017) को "झटका और हलाल... " (चर्चा अंक-2933) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबेहद सुन्दर
ReplyDeleteबेहद सु्न्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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