Wednesday, April 25, 2018

हाइकु.....नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”

(१)
तेज तपन,
बनी हूँ विरहन
जलता मन,
   
(२)
आखिरी आस
अब होगा मिलन
बुझेगी प्यास

(३)
फाल्गुनी रंग
चहुँ ओर गुलाबी
पीव न संग

(4)
रात  अँधेरी
मेंरा चाँद ओझल
उसी को हेरी

(5)
निगाहें फेरी,
या प्रेम छल अब,
है कौन बैरी ?

(6)
बरसें    नैन,
सुजान तुम कहाँ,
मिले न चैन,

(7)
खिलीं कलियाँ,
  सुगन्धित वसुधा,
नव प्रभात,

(8)
नवल राग,
आया है मधुमास,
खेलेंगे फाग,

(9)
कहता चंग,
करें मन गुलाबी
पी प्रेम भंग,

(10)
तपता तन,
  सजन सतरंगी,
रंग दो मन,
-नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना

10 comments:

  1. Replies
    1. आत्मिक आभार परमादरणीय श्री जोशी जी

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    1. हृदयतल की गहराइयों से आभार आदरणीया कोठारी जी

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया भारद्वाज जी

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.04.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2952 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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    1. मेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान प्रदान करने के लिये दिली आभार आदरणीय

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