(१)
तेज तपन,
बनी हूँ विरहन
जलता मन,
(२)
आखिरी आस
अब होगा मिलन
बुझेगी प्यास
(३)
फाल्गुनी रंग
चहुँ ओर गुलाबी
पीव न संग
(4)
रात अँधेरी
मेंरा चाँद ओझल
उसी को हेरी
(5)
निगाहें फेरी,
या प्रेम छल अब,
है कौन बैरी ?
(6)
बरसें नैन,
सुजान तुम कहाँ,
मिले न चैन,
(7)
खिलीं कलियाँ,
सुगन्धित वसुधा,
नव प्रभात,
(8)
नवल राग,
आया है मधुमास,
खेलेंगे फाग,
(9)
कहता चंग,
करें मन गुलाबी
पी प्रेम भंग,
(10)
तपता तन,
सजन सतरंगी,
रंग दो मन,
-नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
सुन्दर
ReplyDeleteआत्मिक आभार परमादरणीय श्री जोशी जी
Deleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteहृदयतल की गहराइयों से आभार आदरणीया कोठारी जी
Deleteसुन्दर .
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया भारद्वाज जी
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.04.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2952 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
मेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान प्रदान करने के लिये दिली आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteअशेष आभार आदरणीय
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