उड़ान जान ले बड़ी कठिन है
कोई तेरे साथ नही है
इन राहों में धूप गरम है
दूर तक कोई छांव नही है
सहारे की भी उम्मीद ना रखना
निज हौसलों पर तू उड़ना
अपनी राह तुम स्वयं बनाना
अपने आप को पाना हो जो
बनी राह पर ना तू चलना
कितनी भी कठिनाई हो
बस तू हरदम आगे बढ़ना
तेरी राहें स्वयं बनेगी
दरिया ,बाधा सब निपटेंगी
तूं अपना नूर जगाये रखना
रोक ना पाये कोई तुझ को
यह निश्चय बस ठान के चलना
उड़ान जान ले......
कुसुम कोठारी
(चित्र सौजन्य गूगल)
सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteमेरी रचना को आपकी धरोहर मे स्थान देने का बहुत बहुत आभार सखी दी। मै अभिभूत हूई इस सम्मान से
ReplyDeleteशुभ दिवस
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-04-2017) को "ग्रीष्म गुलमोहर हुई" (चर्चा अंक-2932) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पंख हैं कोमल, आँख है धुंधली, जाना है सागर पार.......!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.... प्रेरक रचना....
ReplyDeleteवाह!!!