मैं तो सोई थी ज़मीन पर,मुझे फलक ने आ जगाया,
सुनहरी पंख दे कर, इक ख़्वाब सा दिखाया।
उठ चल तू संग मेरे, जन्नत तुझे दिखाऊँ,
होती है कैसी खुशियाँ, आ में तुझे दिखाऊँ।
पंखों ने फिर मेरे, लम्बी एक भरी उड़ान,
छूने सपनों का आकाश, लेकर दिल में सो अरमान।
उड़ने को फिर ज्यों ही, मैंने अपने पंख पसारे,
भूल गई पल भर में, मैं अपने सुख-दुख सारे।
बंद आँखों से अपनी, फिर जब में मुस्कुराई,
चारों दिशाएँ मेरी, मुट्ठी में भर आईं।
परियों ने मेरे संग गुनगुनाया,
चाँद- तारों ने मुझको गले से लगाया,
बादलों ने मेरे लिए मीठी लोरी गाई,
खुशियों की थी मानो बरसात हो आई।
हवाओं के बीच आशियाँ था मेरा,
परियों के संग दोस्ताना था मेरा,
पलभर में में आई स्वर्ग घूम कर,
ख़्वाबों की दुनिया में मस्ती में झूम कर।
बेगानी उस दुनिया में हर कोई लगा अपना,
फिर खट से अचानक टूटा वो मेरा सपना,
कुछ पल कि थी वो जन्नत खुशियों का था बसेरा,
ख़्वाब मेरा टूटा और मुझे याद आया ...
इस पापी दुनिया में ठिकाना था मेरा।
मैं सोई थी ज़मीं पर मैं जागी थी ज़मीं पर।
-सुरिन्द्र कौर
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .....लाजवाब....
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत सुन्दर
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