दिल्ली के ITO के पास
यमुना पर नए चमकते पुल पर
छोटे छोटे हाथ
फल -सब्ज़ियाँ सजाते
पेंसिल की छुअन
नहीं जानते
थोड़ा आगे
प्रगति मैदान की
लम्बी वाली लाल बत्ती पर
सख़्त तार के गोले से
अपने छोटे शरीर को निकालती
सिर्फ दो रुपये की मुस्कान
कनॉट प्लेस के चमकीले शीशों में
देखती अपना मैला चेहरा
जलती सड़क पर छोटे नंगे पाँव
दिन भर भागते
भूख से , शाम के लिए
"सुरक्षित" कोना खोजते
वहीँ थोड़ी दूर
संसद के सामने गुर्राती
राजनैतिक शेरनियां
हैबिटैट सेंटर में
मॉकटेल्स में डूबी
स्त्री-विमर्श की कवितायेँ
आखिर सत्ता का शेर
भूखा कैसे सोयेगा ?
अगले दिन की
ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए
भेड़िये खोजते हैं
एक और लड़की
उम्र, धर्म ,नाम
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता !
-पूजा प्रियंवदा
सचमुच अद्भुत भावों की खुली किताब।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसुंदर रचना प्रस्तुति ...
ReplyDeleteवाह!सुंंदर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत .... बहुत खूब
ReplyDeleteअद्भुत भाव !
ReplyDeleteबेहद उम्दा
ReplyDeleteलाजवाब
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-04-2017) को ""चुनाव हरेक के बस की बात नहीं" (चर्चा अंक-2943) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एयर मार्शल अर्जन सिंह जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteवाह बेहद सुंदर
ReplyDelete