तुम मेरे नहीं हो यह है अहसास मुझे
तुम्हारा साथ फिर भी है ख़ास मुझे !!
नियति का खेल है , हम पहले नहीं मिले
अब दायरे नहीं कर सकते पामास मुझे !!
तोड़ कर जंजीरें समाज की चली आउंगी
हो जाये गर तेरी हाँ का, आभास मुझे !!
कुछ पल ही सही तुम मुझसे तो मिलोगे
नहीं चाहिए फिर कोई और पास मुझे !!
बस आखरी साँस तेरे आग़ोश में आये
क़यामत भी आ जाएगी रास मुझे !!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-04-2017) को "करो सतत् अभ्यास" (चर्चा अंक-2934) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
झूठी आस क्यों बनाए रखना !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, विश्व स्वास्थ्य दिवस - ७ अप्रैल २०१८ “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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