‘एक काफिला नन्हीं नौकाओं का’.....
1- सिर्फ़ एक धुन
उदासी में डूबी सुबह
उदासी में भीगी शाम
उदासी का जाम
जिन्दगी की बाँसुरी पर
सिर्फ़ एक धुन
बजती हैं –
एSS क तेरा नाम ।
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2- तपिश और आग
दिल के आतिशदान में
चटख़ती यादों !
तपिश तो ठीक है, सही जाएगी
उफ़ ! आग ऐसी ।
मत बनो बेरहम इतनी
मेरी दुनिया जल ही जाएगी !
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3-दो पल में
कहाँ- कहाँ हो आया मन
दो पला में
क्या- क्या पाया
खो आया मन
दो पल में …
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4- इंतज़ार
इंतज़ार
इंतज़ार ---
पलकों पर काँपते
आँसुओं की बन्दनवार
कि / पुतली की रोशनी में
झिलमिलाते /दीयों की क़तार ----
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5-दस्तक
स्वीटपीज़ की गंध
धीमे – धीमे/ हवा पर बैठ
सरसराती/ आती हैं
कोई महक भरी याद
हौले –हौले
मेरे दिल का दरवाज़ा
थपथपाती हैं –
न, नहीं खोलूँगी !
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6-फाँस
बदल गया मौसम
फूल गए
अमलतास
करक गई / ज़ोर से
फिर कोई फाँस…
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7-चोट
सुबह-सवेरे
कोयल बोली / कहाँ पी का गाँव
मौसम-बहेलिया
मँजे खिलाड़ी-सा
फेंक गया दाँव
टप से गिरी मैं
चोट खाई चिड़िया-सी
बाज़ी फिर
उसके हाथ रहेगी !!
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8-मृग- जल
हौले –से
तुमने/ तपता मेरा हाथ
छुआ, और पूछा -
‘अब कैसी हो?’
----झपकी आई थी !
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9-सान्त्वना
फूल
मुझे बहलाने आए—
मेरे पास बैठ कर
हिचकी भर-भर
रोने लगे …
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10- सिसकी
बहुत देर रो –रो कर
हलकान हो-हो कर
सो जाए/ कोई बच्चा
काँधे लग कर
तो/ नींद में
जैसे बार- बार
उसे सिस की आती है,
ऐसे
मुझे तेरी याद आती है…।
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11-बुज़दिल
दहकती टहनियाँ
गुलमौर की
‘आग किसने लगाई’
फुस फुसाया जा रहा है,
सवाल
जंगल में कई दिन से
बुझाने
कोई आगे नहीं आता ।
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12- औचक ही
गुज़रे सबेरों की
किताब
का कोई पन्ना खुल गया
जनवरी की अलस्सुबह
ठण्डे पानी से नहा कर
निकलने पर
पूरी रफ्तार से / चलते
छत-पंखे के नीचे
औचक ही
आ गया तन –मन…
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13-मिट्टी का दिया
मैं / मिट्टी का दीया
बड़ी मेहरबानी!
इस दीवाली
तुमने जला दिया
और / यूँ / अपना
जश्न मना लिया …
-डॉ. सुधा गुप्ता
वाह!!! बहुत खूब .... सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत खूब .... सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति, शब्दों के पाश में मन को घेर लेने योग्य शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-04-2017) को "पृथ्वी दिवस-बंजर हुई जमीन" (चर्चा अंक-2947) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह डा सुधा जी अप्रतिम अप्रतिम ....नाम लघु कवितायें अर्थ बड़े भारी घनघोर पढ़ते गुनते आज हृदय मैं मचा रहे शोर बड़ी जोर .....उम्दा कवितायें सुधा जी नमन
ReplyDeleteअतुलनीय शब्दों मे भावों का जाल गूंथ गया जैसे कोई अमर बैल लिपटी हो वट से पर बिल्कुल निर्लिप्त!!!
ReplyDeleteअद्वितीय अद्भुत।
अत्यन्त सुन्दर सृजन .
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत लाजवाब..
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जोकर और उसका मुखौटा “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
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