है मुफ़लिसी का दौर पर हिम्मत तो देखिए,
इस शायर-ए-फनकार की मोहब्बत तो देखिए।
बिन पंख के ही उड़ने को बेताब किस कदर,
नादान परिंदे की हसरत तो देखिए।
सूखे में किसानों का जीना मोहाल था,
अब बाढ़ है, खुदाई रहमत तो देखिए।
जब से हमारे शहर अदाकार आ गए,
बाज़ार में अश्कों की कीमत तो देखिए।
सदियों से परिंदों के जो आशियाँ रहे,
इन शख्त दरख्तों की नज़ाकत तो देखिए।
हर कायदे-कानून के वे जानकार हैं,
यह कवायद, पैंतरे, हुज्जत तो देखिए।
कहीं गाली, कहीं गंठजोड़ की जद्दो-जहद शुरू,
इस सियासी ऊंट की करवट तो देखिए।
जिसको भी देखिए वही कींचड़ में सना है,
सियासत में शरीफों की किल्लत तो देखिए।
जीने की आरज़ू में मरे जा रहें हैं लोग,
यह ख्वाहिश-ए-दौलत, ये जरूरत तो देखिए।
‘बाप’ छोड़िए, इन्हें ‘दादा’ बना लिया,
इस शहर में गुंडों की इज्जत तो देखिए।
जेल से रिहा नेता का खैरात लूटते,
चिथड़े लपेटे बच्चे की किस्मत तो देखिए।
अल्फ़ाज की तपिश को सीने में दबाकर,
गुम-सुम पड़े पन्ने की शराफत तो देखिए।
पिंजरे में कुलबुलाते दिल के सभी अरमान,
अब कागजों पर इनकी शरारत तो देखिए।
-कौशल शुक्ला
उम्दा रचना कौशल जी...
ReplyDeleteलाजवाब!!!!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह!!! बहुत खूब ... नमन आप की लेखनी को।
ReplyDeleteबेहतरीन, शानदार, लाजवाब गजल....
ReplyDeleteवाह!!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-04-2017) को "बदला मिजाज मौसम का" (चर्चा अंक-2941) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteआफरीन कौशल जी ....
ReplyDeleteक्या बानगी है आपके लेखन की कड़वी बात शहद मैं लपेट कर नजाकत से परोसते है खाने वाला ही जाने क्या और क्यों परोसते है ! वाह अति सुंदर !
शब्दों को तीखा किया दिया दुशाला लपेट
ताड़ ताड़ बजने लगे अति अति सुंदर भेंट