पंख फैलाओ अगर पास आसमान रहे।
ऊँचा पहुँचोगे तुम साथ गर उड़ान रहे।
मखौल मेरा बनाओ तो बना लो लेकिन,
तीर मुझपर चलाओ तो चला लो लेकिन।
कुछ तो ऐसा करो पास में ईमान रहे॥
हर एक पल उसे बस बात इक सताती है,
चैन की नींद भी तो एक पल न आती है।
घर में जब उसके बेटी कोई जवान रहे॥
अब जो गुज़रे तो फिर न लौट पायेंगे हम,
हमें यक़ीं है उस वक़्त याद आएँगे हम।
उम्र के दौर में जब आपके ढलान रहे॥
एक औरत सँवार देती है दुनिया सारी,
ज़िन्दगी लगने लगे जैसे बगिया प्यारी।
घर वो हो जाये जो पास इक मकान रहे॥
पंख फैलाओ अगर पास आसमान रहे।
ऊँचा पहुँचोगे तुम साथ गर उड़ान रहे॥
-मंजूषा "मन"
हौसलों की उड़ान कोई नहीं रोक सकता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
हार्दिक आभार कविता जी
Deleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सुधा जी
Deleteवाह!!बहुत सुंंदर ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुभा जी
Deleteहार्दिक आभार सुशील जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका राधा जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार नीतू जी
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