Sunday, April 29, 2018

कहमुकरियाँ....अमीर खुसरो

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खा गया पी गया 
दे गया बुत्ता 
ऐ सखि साजन? 
ना सखि कुत्ता! 

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लिपट लिपट के वा के सोई 
छाती से छाती लगा के रोई 
दांत से दांत बजे तो ताड़ा 
ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा! 

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रात समय वह मेरे आवे 
भोर भये वह घर उठि जावे 
यह अचरज है सबसे न्यारा 
ऐ सखि साजन? ना सखि तारा! 

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नंगे पाँव फिरन नहिं देत 
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत 
पाँव का चूमा लेत निपूता 
ऐ सखि साजन? ना सखि जूता! 

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ऊंची अटारी पलंग बिछायो 
मैं सोई मेरे सिर पर आयो 
खुल गई अंखियां भयी आनंद 
ऐ सखि साजन? ना सखि चांद! 

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जब माँगू तब जल भरि लावे 
मेरे मन की तपन बुझावे 
मन का भारी तन का छोटा 
ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा! 

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वो आवै तो शादी होय 
उस बिन दूजा और न कोय 
मीठे लागें वा के बोल 
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!

-अमीर खुसरो

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-04-2017) को "अस्तित्व हमारा" (चर्चा अंक-2956) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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