Sunday, April 15, 2018

टॉफी...कमलकिशोर पाण्डेय


पीली टॉफी,
नीली टॉफी
चमकीली साड़ी में लिपटी टॉफी.

चपटी टॉफी, गोल टॉफी,
ढोलक की शक्ल वाली डाँवाडोल टॉफी.

छोटी लड़की ने सारी टॉफी देख डालीं-
परचून की दुकान के मर्तबान में.

तब दुकानदार को पर्ची बढ़ाई.
49 के सामान पर, दुकानदार ने-
एक रुपये की टॉफी देनी चाही.

मर्तबान में ज्यों ही हाथ डाला,
लड़की की आँखों के आगे-
फिर नाचने लगीं
पीली टॉफी,
नीली टॉफी
चमकीली साड़ी में लिपटी टॉफी.

कुछ टॉफियाँ 
खींचकर बाहर निकालीं
तब समझदार छोटी लड़की बोली-
टॉफी नहीं,
इनके बदले
माचिस की  डिब्बी  दे  दो . 
-कमलकिशोर पाण्डेय
मूल रचना

9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-04-2018) को ) "कर्म हुए बाधित्य" (चर्चा अंक-2942) पर होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. वाह कहाँ खो गया बचपन
    मार्मिक रचना 👌👌👌👌
    टॉफी से माचिस का सफर
    पल मैं तय कर गया ये बचपन

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  3. बहुत खूबसूरत रचना। सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. बहुत ही मार्मिक रचना...परिस्‍थितियां बच्‍चों को भी वयस्‍क बना देती हैं

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  5. आदरणीय कमल किशोर र जी की रचना में बहुत ही सरलता से जीवन का एक मार्मिक चित्र उभर आया है | विपन्नता बच्चो को समय से पहले ही समझदार बना देती है | बेहतरीन अभिव्यक्ति | यशोदा दीदी सादर आभार प्रस्तुती के लिए |

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  6. जरूरतें और मजबूरी सब सिखा देती है....
    बहुत लाजवाब....

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  7. बहुत सुन्दर

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  8. हृदयस्पर्शी । अभावों में बचपन खो जाता है ।

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