ठूँठ होना
आसान नहीं होता
सतत् दोहन से
गुजरना होता है पेड़ को
ठूँठ होने के लिए
ठूँठ होने के लिए भी
चाहिए होती हैं
जीवन के प्रति आस्था
ठूँठ भी कई बार होता हैं
बसंत के आगमन पर
हरा -भरा।
3-ए-26, महावीर नगर तृतीय, कोटा - 324005(राज.)
मोबाइल-9460677638
E-mail-omnagaretv@gmail.com
सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी कविता ने तो ठूठ को भी अर्थपूर्ण कर दिया.. बहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteविचारणीय, अतिसुन्दर !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-05-2017) को
ReplyDeleteसंघर्ष सपनों का ... या जिंदगी का; चर्चामंच 2629
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
समय की कठोरता और परिवर्तन का यथार्थ समझाती रचना सीधा प्रहार करती है सच को न स्वीकारने वालों पर। उत्कृष्ट रचना। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
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