Sunday, May 7, 2017

ठूँठ होना...ओम नागर















ठूँठ  होना
आसान नहीं होता

सतत् दोहन से
गुजरना होता है पेड़ को
ठूँठ होने के लिए

ठूँठ होने के लिए भी
चाहिए होती हैं
जीवन के प्रति आस्था

ठूँठ भी कई बार होता हैं
बसंत के आगमन पर
हरा -भरा।
3-ए-26, महावीर नगर तृतीय, कोटा - 324005(राज.)
मोबाइल-9460677638
E-mail-omnagaretv@gmail.com

7 comments:

  1. आपकी कविता ने तो ठूठ को भी अर्थपूर्ण कर दिया.. बहुत खूब...

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. विचारणीय, अतिसुन्दर !

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-05-2017) को
    संघर्ष सपनों का ... या जिंदगी का; चर्चामंच 2629
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. समय की कठोरता और परिवर्तन का यथार्थ समझाती रचना सीधा प्रहार करती है सच को न स्वीकारने वालों पर। उत्कृष्ट रचना। बधाई।

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  6. बहुत सुंदर ।

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