Wednesday, May 10, 2017

सिद्धार्थ बुद्ध हो गए....निधि सक्सेना











सिद्धार्थ बुद्ध हो गए हैं
उन्होंने खोज लिया है जीवन का सत्य
दुख के कारण
सुख के उपाय
पाप और पुण्य के हेतु
और शांति के मार्ग..

कुछ विचलित हैं यशोधरा
जब से सुना है कि सिद्धार्थ ने ज्ञान पा लिया है
सब उनके अनुगामी हो रहे हैं
अनुयायी बढ़ते जा रहे हैं..

वे जानना चाहती है
कि बुद्ध ने कौन सा रहस्य खोजा है
एक बार पुनः भेंट करना चाहती हैं
शर्त इतनी सी कि बुद्ध खुद आयें उनके द्वार..
बुद्ध ने अनुरोध ठुकराया नहीं
कक्ष में पहुँचे हैं..

यशोधरा ने उनके हाथों को स्पर्श किया
कोमल हाथ अब खुरदुरे हो चले हैं
दोनों हाथों को अपने हाथ में ले 
शीश से लगाया
आसन दिया
और प्रश्न किया
क्या खोजा सिद्धार्थ
दुःसह तप कर के
भिक्षु बन के..
बुद्ध बता रहे हैं
भूख स्वाभाविक है
परंतु इसके लिए लोभ दुःख है
दूसरों पर हिंसा पाप है
हिंसा का मूल कारण भय है
और भय का मूल स्वार्थ
व्यक्ति स्वार्थ त्याग दे तो पाप का शमन निश्चित है
संयम ही सुख है
कांक्षाओं का नाश ही मोक्ष है
बुद्ध होना अभय होना है..

बुद्ध कहे जा रहे हैं
मानो आज अपने ज्ञान से वे 
उन्हें त्यागने का कलंक धो डालना चाहते हैं
मानो अपने ज्ञान के प्रकाश से वे 
उस अँधकार को उजाले से भर देना चाहते हैं
जिसमें वे उन्हें एकाकी छोड़ गए थे..
यशोधरा सुन रही हैं
सुनते सुनते अचानक यशोधरा मुस्कुराने लगी हैं
फिर जोरों से हंसने लगी
बुद्ध अचकचा गए
प्रश्नवाचक दृष्टि से उन्हें देखा
यशोधरा कह रही हैं
सिद्धार्थ क्या इसी ज्ञान के लिए तुमने मुझे तजा
छः वर्ष भटकते रहे वन में
भिक्षा की गुहार लगाते रहे
दारुण यातनाएँ सहते रहे
साधना तप उपवास किये..

ओह सिद्धार्थ
मुझसे विमर्श किया होता
वाद विवाद किया होता
पूछा होता
मैं कहती 
बताती
कि ये सहज स्वाभाविक समर्पण है
नया कुछ नहीं..
परंतु तुम तो मुँह फेर कर चले गए 
कदाचित् मुझे लधु और हीन जाना
अपनी साधना में बाधा जाना...

सिद्धार्थ अवाक् हैं
अहम् का एक कण उस तेजस्वी काया में शेष था अभी
वही आँखो से यशोधरा से पग पर टपक पड़ा..
बिना कुछ कहे उठ कर चल दिए 
अब वो पूर्ण बुद्ध हुए..
-निधि सक्सेना

आज भगवान बुद्ध जयन्ती पर विशेष रचना

5 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बुद्ध पूर्णिमा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. बहुत ही मार्मिक वर्णन जीवन के सारभौमिक सत्य का। बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ !आभार। "एकलव्य"

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  3. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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