Saturday, May 6, 2017

यों ही काटते रहें.....रोहित कौशिक









आओ हम यों ही
मरते-कटते रहें
और फूलने दें संतों की तोंद
बढ़ने दे  चोटी और तिलक की लंबाई
फलने दें मौलवियों की दाढ़ी।
कि जब तक सम्पूर्ण मानवता का रक्त
संतों की तोंद में न समा जाए
और इस रक्त से पोषित संतों की चोटी
और मौलवियों की दाढ़ी ज़मीन को न छू जाए
आओ हम यों ही काटते रहें
एक-दूसरे का गला।

-रोहित कौशिक 
कविता संग्रह 
'इस खंडित समय में' 
से साभार

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