Friday, May 5, 2017

मैं स्त्री..........नीलिमा श्रीवास्तव












मैं स्त्री
कभी अपनों ने
कभी परायों ने
कभी अजनबी सायों ने
तंग किया चलती राहों में

कभी दर्द में
कभी फर्ज में
कभी मर्ज में
वेदना मिली
इस धरती के नरक में

कभी शोर में
कभी भोर में
कभी जोर में
संताप सहे अपनी ओर से

कभी अनजाने में
कभी जान में
कभी शान में
कुचले गये अरमान झूठी पहचान में

कभी प्यार से
कभी मार से
कभी दुलार से
छली गयी हूॅ मैं स्त्री इस संसार में
-- नीलिमा श्रीवास्तव 

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 06 मई 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
    

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।

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  3. फिर भी स्त्री के बिना संसार की कल्पना करना व्यर्थ है, आधार है वह सृष्टि की
    बहुत अच्छी रचना

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