कुछ गोलियों की आवाजें
बम के धमाके ,
फैल जाती है खामोशी ...
नहीं, यह खामोशी नहीं
सुहागिनों का, बच्चों का,
मां बाप का करूण विलाप है,
मूक रूदन है प्रकृति का ,
धरती का, आकाश का .....
जलेंगी चिताएं और विलीन हो जायेंगे शरीर
जो सिर्फ शरीर ही नहीं
प्यार है, उम्मीदें है, विश्वास है, आशा है ,
बच्चों के, भाई बहनों के, पत्नी, माँ बाप और
सभी अपनों के
वह सब भी जल जायेंगे
विलीन हो जायेंगे शरीर
पंचतत्वों में धुँआ बनके, राख बनके ,
आकाश, हवा, पानी मिट्टी और अग्नि में
सब विलीन हो जायेंगे ...
कौन कहेगा उनके बच्चों से -
बेटा आप खूब पढ़ो मै हूँ ना ?
कौन उनको प्यार देगा,
जिम्मेदारी उठायेगा ??
कैसे बेटियाँ बाबुल के गले लगकर विदा होंगी ?
उनकी शादी बिन बाबुल के कैसे होगी?
बुजुर्ग माँ, पिता, पत्नी, बहन, भाई
सबके खामोश आँसू बह रहे,
दर्द समेटे
कैसे जी रहे उनको कौन संभालेगा?
ये सारे कर्तव्य शेष रह जायेंगे ,
ये विवशता के आँसू,
ये पिघलते सुलगते दर्द बन जायेगें,
ये हवा में रहेंगे
सिसकियाँ बनकर,
पानी में मिलेंगे पिघले दर्द बनकर ,
मिट्टी में रहेंगे, आकाश में, बादल में रहेंगे,
ये कहीं विलीन ना हो सकेंगे
मिट ना सकेंगे.....
इन्हें कोई पूरा नहीं कर सकेगा,
ना सरकार, ना रिश्तेदार ,
ये कर्तव्य, ये फर्ज
अनुत्तरित प्रश्न बन जायेगे ,
ये शेष रहेंगे, ये शेष रह जाएंगे...
-अंजना बाजपेई
जगदलपुर (बस्तर )
छत्तीसगढ़....
सुन्दर।
ReplyDeleteसलाम
ReplyDeleteसलाम
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