गर्मी के बावजूद इस बार अप्रैल में कई जगह आना-जाना करना पड़ा था। जिसमें सालासर बालाजी के दर्शनों का सुयोग भी था।
जिसका ब्यौरा पिछली पोस्ट में कर भी चुका हूँ। पर इस यात्रा के दौरान एक चीज पर ध्यान गया कि टी.वी पर रोज हर मिनट बरसाए जा रहे इश्तहारों का असर तो पड़ता ही है। जैसे झूठ को रोज-रोज कहने-सुनने पर वह भी सच लगाने लगता है। इन्हीं उत्पादों में एक है "सैनेटाइज़र", जिसको साबुन-पानी का पर्याय मान कर, हर जगह, बिना उसके दुष्प्रभावों को जाने, खुलेआम घर-बाहर-स्कूल-कार्यक्षे त्र व अन्य जगहों में होने लगा है। इसका एक दूसरा कारण इसको आसानी से अपने साथ रख लाना ले जा सकना भी है। धीरे-धीरे यह आधुनिकता की निशानी बन फैशन में शुमार हो गया है। जिस तरह साधारण पानी की जगह "मिनिरल वाटर" ने ले ली है उसी तरह साबुन-पानी की जगह अब "सैनिटाइजर" स्टेटस सिंबल बन कर छा गया है।
जिसका ब्यौरा पिछली पोस्ट में कर भी चुका हूँ। पर इस यात्रा के दौरान एक चीज पर ध्यान गया कि टी.वी पर रोज हर मिनट बरसाए जा रहे इश्तहारों का असर तो पड़ता ही है। जैसे झूठ को रोज-रोज कहने-सुनने पर वह भी सच लगाने लगता है। इन्हीं उत्पादों में एक है "सैनेटाइज़र", जिसको साबुन-पानी का पर्याय मान कर, हर जगह, बिना उसके दुष्प्रभावों को जाने, खुलेआम घर-बाहर-स्कूल-कार्यक्षे
इस यात्रा पर भी सदा की तरह "कानूनी भाई" सपरिवार साथ थे। यात्रा के और धर्मस्थान में रहने के दौरान कई बार हाथ वगैरह को साफ़ करने की जब भी जरुरत महसूस होती, पानी-साबुन की उपलब्धता के बावजूद उन्हें "सैनिटाइजर" का इस्तेमाल करते पाया। एक-दो बार टोका भी कि बार-बार केमिकल का प्रयोग ठीक नहीं रहता, पर उनके दिलो-दिमाग में इश्तहारों ने ऐसा घर बना लिया था कि अब उन्हें साबुन वगैरह का उपयोग असुरक्षित और पिछड़ेपन की निशानी
जबकि आज वैज्ञानिक और डॉक्टर भी इसके कम से कम इस्तेमाल की सलाह देने लगे हैं।
जबकि आज वैज्ञानिक और डॉक्टर भी इसके कम से कम इस्तेमाल की सलाह देने लगे हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ मिसोरी, कोलंबिया ने अपनी खोज से सिद्ध किया है कि इसके ज्यादा इस्तेमाल से हाथों पर रहने वाले अच्छे बैक्टेरिया के खत्म होने के साथ-साथ हमारी एंटीबायोटिक अवरोध की क्षमता के कम होने की आशंका भी बढ़ जाती है। शोधों से यह भी सामने आया है कि सैनेटाइजर के ज्यादा उपयोग से खतरनाक रसायनों को शरीर अवशोषित करने लगता है जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। कई बार तो इसके तत्व यूरीन और खून के सैम्पल में भी दिखाई पड़ने लगे हैं। खासकर बच्चों को इसका कम से कम उपयोग करना चाहिए। वैसे भी अधिकतर सैनेटाइजर में अल्कोहल सिर्फ 60% ही होता है जो जीवाणुओं के खात्मे के लिए पर्याप्त नहीं होता। इसका उत्तम विकल्प साबुन और पानी ही है।
इसका उपयोग न करने की सलाह के कुछ और भी कारण बताए गए हैं, जैसे इसके ज्यादा उपयोग से त्वचा को नुक्सान होता है। इसमें "ट्राइक्लोसन" और "विस्फेनोल" जैसे हानिकारक और विषैले केमिकल मिले होते हैं। जो तरह-तरह की बीमारियों को तो न्यौता देते ही हैं हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कम कर देते हैं। अमेरिका के Epidemic Intelligence Service द्वारा की गयी पड़तालों से भी यह सच सामने आया है कि इसके दिन में छह-सात बार के इस्तेमाल से हाथों पर "नोरोवायरस" के पनपने का खतरा उत्पन्न हो जाता है जो हमारे पेट की जटिल बीमारियों का जरिया बनते हैं।
अब तो U.S. Food and Drug Administration ने भी सैनेटाइजर बनाने वाली कंपनियों से पूरा शोध करने को कहा है जिससे इसका प्रयोग निरापद हो सके। वैसे भी इसको प्रयोग में लाने वाले करोड़ों लोग इसे जादुई चिराग ही समझते हैं जिसके छूने भर से बैक्टेरिया का सफाया हो जाता है। जबकि ऐसा नहीं है, जिस तरह साबुन ग्रीस, चिकनाई, मिटटी इत्यादि को साफ़ करता है उस तरह से सैनेटाइजर काम नहीं कर पाता। ज्यादातरकीटाणु उँगलियों के बीच, नाखूनों के अंदर, पोरों में छिपे होते हैं जिन्हें साफ़ करने के लिए हाथों को कम से कम बीस से तीस सेकेण्ड तक धोना बहुत जरुरी होता है। साबुन से धोने के बाद हाथों को ठीक से सूखा लेना चाहिए। वैसे ही यदि सैनेटाइजर का उपयोग करना ही पड़े तो उसके केमिकल को ठीक से वाष्पीकृत होने देना चाहिए और इसके उपयोग के कुछ देर बाद ही भोजन को छूना चाहिए। फिर भी कोशिश यही रहनी चाहिए कि इसका कम से कम ही प्रयोग हो। साबुन-पानी पर खुद और दूसरों का विश्वास बनाए रखने की कोशिश जरूर होनी चाहिए।
अब तो U.S. Food and Drug Administration ने भी सैनेटाइजर बनाने वाली कंपनियों से पूरा शोध करने को कहा है जिससे इसका प्रयोग निरापद हो सके। वैसे भी इसको प्रयोग में लाने वाले करोड़ों लोग इसे जादुई चिराग ही समझते हैं जिसके छूने भर से बैक्टेरिया का सफाया हो जाता है। जबकि ऐसा नहीं है, जिस तरह साबुन ग्रीस, चिकनाई, मिटटी इत्यादि को साफ़ करता है उस तरह से सैनेटाइजर काम नहीं कर पाता। ज्यादातरकीटाणु उँगलियों के बीच, नाखूनों के अंदर, पोरों में छिपे होते हैं जिन्हें साफ़ करने के लिए हाथों को कम से कम बीस से तीस सेकेण्ड तक धोना बहुत जरुरी होता है। साबुन से धोने के बाद हाथों को ठीक से सूखा लेना चाहिए। वैसे ही यदि सैनेटाइजर का उपयोग करना ही पड़े तो उसके केमिकल को ठीक से वाष्पीकृत होने देना चाहिए और इसके उपयोग के कुछ देर बाद ही भोजन को छूना चाहिए। फिर भी कोशिश यही रहनी चाहिए कि इसका कम से कम ही प्रयोग हो। साबुन-पानी पर खुद और दूसरों का विश्वास बनाए रखने की कोशिश जरूर होनी चाहिए।
उपयोगी जानकारी....
ReplyDeleteआधुनिकता औऱ दिखावा इस हद तक बढ गया है कि लोग अपना भला बुरा भी भूल गये हैं
बढ़िया जानकारी।
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