Wednesday, July 8, 2020

मुझे अच्छा लगता है ...साधना वैद

इन दिनों
मन की खामोशियों को
रात भर गलबहियाँ डाले
गुपचुप फुसफुसाते हुए सुनना
मुझे अच्छा लगता है !  

अपने हृदय प्रकोष्ठ के द्वार पर
निविड़ रात के सन्नाटों में
किसी चिर प्रतीक्षित दस्तक की
धीमी-धीमी आवाजों को
सुनते रहना
मुझे अच्छा लगता है !
  
रिक्त अंतरघट की  
गहराइयों में हाथ डाल
निस्पंद उँगलियों से
सुख के भूले बिसरे
दो चार पलों को  
टटोल कर ढूँढ निकालना
मुझे अच्छा लगता है !

थकान के साथ
शिथिलता का होना  
अनिवार्य है ,
शिथिलता के साथ
पलकों का मुँदना भी
तय है और
पलकों के मुँद जाने पर
तंद्रा का छा जाना भी
नियत है ! 

लेकिन सपनों से खाली
इन रातों में
थके लड़खड़ाते कदमों से  
खुद को ढूँढ निकालना
और असीम दुलार से
खुद ही को निज बाहों में समेट  
आश्वस्त करना  
मुझे अच्छा लगता है !
-साधना वैद

7 comments:

  1. खुद ही को निज बाहों में समेट
    आश्वस्त करना
    मुझे अच्छा लगता है !.... बहुत सुंदर अभव्यक्ति!!!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3743 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 09 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  4. सुन्दर भावव्यक्ती

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  5. वाह !लाजवाब सृजन आदरणीय दी .
    सादर

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  6. अरे वाह ! आपकी धरोहर में अपनी रचना देख कर सुखद आश्चर्य एवं हर्ष से नि:शब्द हूँ यशोदा जी ! और फिर उसे चर्चामंच पर देखना दूसरा आश्चर्य है ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार प्रिय सखी !

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